औरत के मन की व्यथा
औरत के मन की व्यथा........
सोचती हूँ , चलती हूँ और फिर दोड़ती हु मै ,
आशाओ निराशाओ से भी आगे कुछ देखती हु मै
पैदा हुई तो कुछ पर मुस्कुराहट और
बाकि सभी चेहरों पर दुःख देखती हूँ मै
अपने माँ बाप का प्यार तो मिला पर
समाज के उपहास को नित्य झेलती हूँ मै
इस देश में धर्म के नाम पर नवरात्रों में पूजी जाती हूँ
और बाकी के बचे दिनों में गिद्धों सी नजरो...
सोचती हूँ , चलती हूँ और फिर दोड़ती हु मै ,
आशाओ निराशाओ से भी आगे कुछ देखती हु मै
पैदा हुई तो कुछ पर मुस्कुराहट और
बाकि सभी चेहरों पर दुःख देखती हूँ मै
अपने माँ बाप का प्यार तो मिला पर
समाज के उपहास को नित्य झेलती हूँ मै
इस देश में धर्म के नाम पर नवरात्रों में पूजी जाती हूँ
और बाकी के बचे दिनों में गिद्धों सी नजरो...