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तेरी-मेरी यारियाँ! ( भाग - 25 )
निवान की यह बात सुनकर गीतिका अपने एक पैर की चप्पल निकालकर "चल पागल कहीं का" बोलते हुए चप्पल निवान के ऊपर फेंक कर मारती है।

लेकिन निवान के वह चप्पल लगती ही नही है और वह वाणी का हाथ पकड़ते हुए उसको घर की और ले जाता है।

चार दिन बाद,,,, सुबह - 7:00 बजे,,, दिन - रविवार,,,

पार्थ अपने बड़े भाई देवांश के साथ पार्क की घास पर नंगे पाव चल रहा था की तभी उसकी नज़र निवान के ऊपर जाती है जो अपनी बहन वाणी के साथ पार्क में खेल रहा होता है।

जिनको देखते ही पार्थ देवांश से " भईया में अभी आया " बोलकर निवान के पास चला जाता है और देवांश अकेले ही घास पर चलने लगता है।

की तभी देवांश को  गीतिका और मानवी दोनों पार्क में आती हुई दिखाई देती है और उनको देखते ही देवांश दूसरी तरफ घूम जाता है और अपने मन में ही बोलता है।

देवांश :- मुँह बनाते हुए,,,, अरे यार,,, अब यह चुहिया और उसकी यह पागल बहन कहा से आ गई।

वही दूसरी ओर पार्थ निवान के पास पहुँच जाता है और उसके पास जाते ही बोलता है।

पार्थ :- निवान,,, आज तू सुबह सुबह पार्क में क्या कर रहा है ?

निवान :- मुस्कुराते हुए,,,,, बस ऐसे ही अपनी छोटी बहन वाणी के साथ आया हूँ।

पार्थ :- चोंकते हुए,,, क्या कहा तूने, तेरी छोटी बहन भी है।

निवान :- वाणी की तरफ इशारा करते हुए,,,, हाँ,,, यह रही मेरी छोटी बहन, वाणी,,,,,

पार्थ :- वाणी को देखते हुए,,,,हैलो वाणी,,, आप कैसे हो।

वाणी ने गीतिका की तरह पार्थ को भी पहली बार देखा था तो वह पार्थ से बिना कोई बात किए ही इधर उधर भागते हुए खेलने लगती है निवान और पार्थ आपस मे बात करने लगते हैं।

जहां एक ओर निवान और पार्थ आपस मे बात कर रहे थे वही दूसरी ओर निवान की दी हुई कॉपी और किताब से गीतिका अपनी बहन मानवी से पढ़ रही थी।

गीतिका का पार्क में आकर पढ़ने का कारण उसकी घर में पढ़ने को लेकर लगाई गई पाबंदिया थी जिसके कारण गीतिका को पार्क में पढ़ने के लिए आना पड़ता था।

वही निवान और पार्थ एक दूसरे से बात कर ही रहे होते है की तभी पार्थ निवान से बोल पड़ता है।

पार्थ :- बात करते करते ही,,,,, निवान चल आज तुझे अपने बड़े भाई से मिलाता हूँ ।

निवान :- लेकिन उनसे तो मैं मिला हूँ,,,,जिस दिन तू स्कूल जा रहा था मैने उन्हें देखा था ।

पार्थ :- मुस्कुराते हुए,,,, तू गीतिका से कम थोड़ी है,, उसे मिलना नही देखना कहते है,,, बुद्धु,,,।

निवान :- अच्छा रुक,, मै अभी वाणी को भी लेकर आता हूँ।

निवान जैसे ही वाणी को लेकर आ जाता है। वह तीनों  देवांश के पास चले जाते है।

वही देवांश पार्क में बैठा फोन चला रहा होता है की पार्थ देवांश के हाथ से फोन छीनते हुए बोलता है।

पार्थ :- फोन छीनते हुए,,,, क्या आप भी पार्क में भी फोन चलाते रहते हो। वह पीछे देखे बिना ही पीछे की ओर इशारा करते हुए देवांश से बोलता है। इससे मिलो यह मेरा दोस्त निवान है।

देवांश जब पार्थ के पीछे देखता है तो पीछे देखते ही उसको हंसी आ जाती है और वह जोर जोर से हँसने लगता है। देवांश को इस तरह हंसता देख पार्थ देवांश से पूछता है।

पार्थ :- देवांश को घूरते हुए,,,, क्या हुआ,, आपको कभी भी और कहीं भी  हँसी आ जाती है और इसमे हँसने वाली क्या बात है।

देवांश :- हँसते हुए,,, क्योंकि तेरे हिसाब से फोन में ज्यादा चलाता हूँ और दिखाई तुझे नही दे रहा,,, ओह्ह,, नही गलत बोल दिया बल्कि तुझे तो कुछ ज्यादा ही दिखाई देता है।

देवांश की यह बात सुनते ही,,,,,

To Be Continue Part - 28
© Himanshu Singh