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सबक सिखाने वाली सत्य घटना
*सबक सिखाने लायक सत्य घटना*
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आज रविवार 8 जनवरी 2023 दोपहर के बाद लगभग 3:00 बजे का समय था। मैं और मेरी पत्नी कार से रामपुर से गाजियाबाद के लिए घर लौट रहे थे। बाहर बहुत ठंड सूरज लगता आज छुट्टी पर है हाईवे के दोनों ओर खेत लहरा रहे हैं कहीं सूखी हरी पत्ती लिए हुए गन्ना तो कहीं हरियाली लिए गेहूं का खेत और कहीं दूर तक पीली सरसों के फूल दिखाई देते हैं । सड़क किनारे चलते हुए ट्यूबवेल को देखकर अचानक रुक कर खेत तक जाने की इच्छा जागृत हुई हमने सड़क से नीचे उतारकर गाड़ी खड़ी की और पति-पत्नी खेतों की ओर चल दिए। ट्यूबवेल के पानी को छू कर देखते हुए हमारी नजर पास के खेत में काम करती एक महिला पर पड़ी। हम दोनों बरबस उसके पास पंहुच गए। वह लंबे कद गोरे रंग की एक उम्रदराज बुज़ुर्ग महिला थी। मेरी पत्नी ने उत्सुकतावश उस महिला से पूछा आप क्या कर रही हैं। उसने बताया वह लहसुन की फसल से घास निकाल रही है। लगभग एक हफ़्ते से तबियत खराब होने से वह खेत पर नहीं आ सकी थी जिससे घास बड़ी हो गई है। मैने पूछा आप अपने खेतों में कौन कौन सी फसल बोते हैं। अचानक वह गम्भीर हो गई और बोली यह तो जाट का खेत है में तो मजदूरी करती हूं। यह कह कर वह रोने लगी और उसके बाद जो आप बीती उस महिला ने सुनाई उसे सुनकर हम दोनों आवाक रह गए।
उसने कुछ दूर के खेत की ओर इशारा करते हुए कहा वह हमारे खेत हैं पर मै उसमें जा भी नहीं सकती। उसने बताया मेरे दोनों बेटे मुझे खाने को नहीं देते और मुझे मारते हैं।यह बताते हुए वह फिर रोने लगी।उसने पैरों में जो चप्पल पहन रखी थी उन्हें दिखाते हुए बताया कि ये मेरे पैर से छोटी हैं जो खेत की मालकिन ने तरस खा कर अपनी पोती की पुरानी चप्पल दे दी हैं। उसने बताया तीन लड़कियों के बाद बहुत दिनों के अंतर से दो लड़के हुए थे। हमने बड़े प्यार से इन्हें पाला था। लगभग बारह साल पहले मेरे पति का देहांत हो गया था। तीनों लड़कियों की शादी वह कर गए थे। दोनों लड़कों की शादी मैंने बाद में की थी। उस महिला ने एक बार फिर आंसू पोंछते हुए बताया कि मै हापुड़ की लड़की हूं मेरे पिता काफी पैसे वाले व्यक्ति थे हम तीन बहनें हैं कोई भाई नहीं है।मेरे पिता अपने घर दामाद रखना चाहते थे। परंतु मेरे पति को गांव और खेतों से प्यार था।
पिता की संपति का हिस्सा बेचकर मैंने अपने पति की इच्छा से यहां गांव में खेती की जमीन खरीदी थी। प्यार और ममता के कारण जमीन बेटों के नाम करा दी थी यह सोच कर कि ये बुढ़ापे का सहारा बनेगें। परंतु पति के मर जाने और बेटों की शादी होने के कुछ दिनों बाद बेटों ने तंग करना शुरू कर दिया और आए दिन मार पीट करने लगे। हापुड़ शहर में मेरे नाम एक प्लाट था गर्दन पर दरांती रख कर वह भी अपने नाम लिखवा कर बेच दिया। वह बात करते करते रोने लगती थी जिसे देखकर हम दोनों को अत्यंत कष्ट का अनुभव हो रहा था। मैने पूछा आप विधवा हैं क्या आपको सरकारी पेंशन नहीं मिलती है। उसने बताया पहले मिलती थी पर एक साल से वह भी बंद है। उसने कहा ग्राम प्रधान बहुत अच्छे हैं उनके साथ सोमवार को पेंशन के लिए दफ्तर जाना है। इस बुज़ुर्ग महिला की आपबीती सुनकर और कड़ाके की ठंड में इस उम्र में नंगे पैर काम करते देखकर दिल भर आया। खेतों के बीच आस पास कोई सुविधा नहीं होने के कारण हम चाह कर भी कोई मदद नहीं कर सकते थे। भावुक होकर मेरी पत्नी ने कहा आप मेरे जूते पहन लो मुझे अपनी पुरानी चप्पल दे दो मुझे तो कार में बैठ कर घर ही जाना है। यह सुन कर वह महिला हाथ जोड़ कर मना करने लगी की बेटा बहू नाराज़ होंगे मारेंगे कि कहां से लाई है। विवश होकर मेरी पत्नी ने 500 रुपए देते हुए कहा कि माता जी आप जूते खरीद लेना। वह महिला पैसे लेने से मना करते हुए फिर रोने लगी। हम दोनों अपने आपको बेबस महसूस कर रहे थे। किसी तरह समझाते हुए पैसे देकर झूठा भरोसा देकर की हौसला रखो सब ठीक हो जाएगा भारी मन से वापस आकर कार में बैठ कर गाजियाबाद में अपने घर की ओर चल दिए। रास्ते भर और अभी तक यही सोच कर परेशान हैं कि शरीर का हिस्सा खून का रिश्ता इतना खुदगर्ज क्यों हो रहा है। क्या आजकल मां बाप को अपने लाडलो पर आंख बन्द कर भरोसा नहीं करना चाहिए। अपने भविष्य का इंतजाम खुद अपने बल बूते नहीं करना चाहिए।
मेहर चंद चांवरिया
गाजियाबाद