...

13 views

अंतर है, गहरा अंतर
मुझसे रात नहीं कटती। मुझे रात भयानक लगती है। किसी श्मशान में जलती चिता से अधिक दुःखद, किसी टूटे हुए काँच से अधिक चुभन मुझे रात में महसूस होती है..
और दिन! दिन मुझे आईने से निकले परावर्तित प्रकाश की भाँति लगता है.. आँखों को क्षण भर भी असहनशील। जिन मनुष्यों का हृदय अपने ही शव को कांधा देता है वह रात के अँधेरे में अतीत को खोजते हैं मगर ऐसे लोगों के लिए सुबह का प्रकाश आँखों में गर्म शीशा पड़ने जैसा ही है।
कभी-कभी मुझे लगता है मैं जीवित नहीं हूँ, केवल सबको दिखाई देती हूँ।
दिखाई देना जीवित होना नहीं होता और केवल साँसों का रुकना ही मृत्यु नहीं होती।
मेरा रोज स्वयं को जीने की वज़ह देना आँख बंद कर सुई में धागा डालने जैसा है। मगर मैं हूँ और रहूँगी.. क्योंकि मैंने मुस्कुराना सीख लिया है और आँसुओं पर नियंत्रण करना सीख रही हूँ। 'मैं ठीक हूँ' का चोला पहनकर दिन काट लेती हूँ और रात अतीत के धुंधलेपन को आँसुओं से साफ़ करने में गुज़र जाती है।
मगर सुनो..
तुम अब समझदार हो, मायने समझना शुरू करो। अगर हर एक मुस्कुराहट ख़ुशी नहीं है तो हर एक आँसू भी दुःख नहीं है। अंतर है.. गहरा अंतर!
ज़रूरी तो नहीं जो देखा वही सच है।
वो जो माँ ने तुम्हें बचपन में आचार का मर्तबान गिरने पर चाँटा मारा था.. वो आचार ख़राब होने की वज़ह से नहीं, काँच चुभने की फ़िक्र में मारा था।
❤️
#रूपकीबातें #roopkibaatein #roopanjalisinghparmar #roop
© रूपकीबातें