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विवाह
वो मानसी पढ़ी- लिखी लड़की, हमेशा से टॉपर रहने वाली लड़की रही।
उसने प्रतिष्ठित नौकरी भी हासिल कर ली थी। उसकी उम्र बढ़ती जा रही थी पर फिर भी उसकी विवाह आदि में दिलचस्पी ना रही।
जब भी घरमें शादी की बात चलती तो मानसी को एक अजीब सी चिढ़ होती।
ना उसे कोई मधुर संगीत की ध्वनि सुनाई देती। वह तो बस अपनी ही धुन में खोई रहती।

अपनी ही दुनिया में, किताबों की दुनिया में
मानसी बस गहरे चिंत में डूबी होती।
जहाँ बाकी लड़कियाँ घर- गृहस्थी के सपने देख रही होती है, वही मानसी अपने भीतर की दुनिया को ढूंढ रही थी।

जब घर में उसे कोई लड़के की फोटो दिखायी जाती तो उसे कोई फर्क नहीं पड़ता। उसके लिए "विवाह" शब्द में कोई कौतूहल नहीं था।
मानसी के लिए विवाह प्रस्ताव केवल शब्द थे, उसमें जुड़ी कोई भावनाएँ उसके मन में नहीं थी।
विवाह करने में, विवाह शब्द में दिलचस्पी नहीं थी।

वह बस अपनी मन की परतों को खोलना चाहती थी।
अपनी भीतरी यात्रा को आगे बढ़ाना चाहती थी।
उसे बस एक सक्षम योद्धा बनकर देश और समाज के लिए कुछ करना था।
परंतु फिर भी उसे विवाह करने हेतु कई तर्क दिए गए, विवाह करना कितना जरूरी है, यह बताया गया।

शायद सही भी है
परंतु उसका मन, उसकी आत्मा इन तर्को को स्वीकार नहीं कर पा रही थी।
उसके मन में अब वो एक बात समझ चुकी थी।
विवाह तो उसे करना ही पड़ेगा
उसके लिए विवाह ना सकारात्मकता लिए हुए था ना नकारात्मकता..
बस उसका मन तैयार नहीं था विवाह करने के लिए...

किसी के लिए विवाह आनंद का विषय होता है।
तो किसीके लिए विवाह करना अनिवार्य शर्त बन जाता है।
भले वो उसकी मन की स्वतंत्रता के विरुद्ध ही क्यों ना हो
और आखिरकार उसे भी अनिवार्य शर्त के रूप में स्वीकार करना ही पड़ा विवाह को...
एक बहुत पुरानी दलील के साथ..

लड़की का जीवन कहाँ आसान होता है, बिना विवाह के.. और शायद कईं विवाह इसी दलील के साथ किए जाते है....

Usha patel