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पिता क़ा सहारा
पिता क़ा सहारा बड़ा ज़रूरी होता हैं उनसे पूछो जिनको पिता क़ा सहारा नहीं मिलता उनको जीवन जीना कितना मुश्किल होता हैं पिता तों धूप में छाव क़े समान हैं निराशा में आशा क़े समान हैं पिता क़ी एहमियत क़ो समझें उनका मान सम्मान करें उनको बुढ़ापे में बोझ नहीं
अपना फर्ज़ समझकर उनका सहारा बने
जैसे पिता नें बचपन में आपको ऊँगली
पकड़ कर चलना सिखाया बोलना आप उनकी बुढ़ापे क़ी लाठी बनकर उनके साथ चले उनके बिना कुछ कहे उनकी बातों क़ो समझें उनकी तकलीफ क़ो महसूस करें पिता क़े बिना घर घर नहीं रहता बस एक मकान बनकर रह जाता हैं क्योंकि सर पर छत तों पिता क़े होने सें होती हैं पिता तों हमें कंधे पर बैठाकर दुनिया घुमाते हैं तों क्या हम उनकी लाठी बनकर उन्हें कुछ कदम चला भी नहीं सकते तों पिता क़े द्वारा दिया गया हमारा जीवन जीना भी बेकार हैं !

© Purnima rai