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बहन से दोस्त तक
आज लगता हैं, समय फिर से वही आकर खडा हो गया है जहां पहले खडा था । आज भी वही खामोशी चारो तरफ है जो उन दिनों होती थी। पार्क में लोगों की ये विचित्र भीड़ मेरा परिहास कर रही हैं,ये अकेलापन अन्दर ही अन्दर देह को काट रहा है ,ये सोच कर शायद में हिम्मत करती तो सब ठीक हो जाता……………… तभी लीना आई , गोरा किसी हो…….
मैने कुछ नहीं कहा, गोरा सब ठीक है ना।
किसी से झगडा हुआ है या किसी ने कुछ कहा,
मेरे जहन में वही सब घूम रहा था, हालांकि दूसरों के लिए मेरी problam बहुत बड़ी नहीं थी पर कहते हैं ना जिसको चोट लगे दर्द होता है। मुझे अनुमान था पहले की तरह वो मुझेऔर मेरी मनो दशा को समझने की कोशिश भी नहीं करेगी।तभी लीना ने कहा मुझे एका मिली, आज क्या अभी भी तो दोनों में सुलह नहीं हुई?
मैं हकी- बकी रह गई लीना को केसे पता चला किन्तु मेरे ऊपर भावना के दबाव में उससे कुछ पूछ ही नहीं पाई
एका मेरी दोस्त नहीं दोस्त से बढ़कर मेरी सुपर गर्ल……

शैशव काल में सुना था, "एक सच्चा मित्र के बिना जीवन अधूरा होता है उसी प्रकार जैसे प्रकाश के बिना पुष्प अंकुरित नहीं होता "
कहते है ना बिना ईश्वर की इच्छा के पत्ता भी नहीं हिलता है। विद्यालय में जिसे अपना दोस्त बनाना चाहा उन्हें मेरी दोस्ती क़ुबूल ना थी, और जो मुझसे दोस्ती करना चाहते वो केवल इसलिए क्योंकि में उनकी मुश्किल का हल थी। और इसी तरह मेरी खोज जारी रही। टीचर कहते थे , सच्चे मित्र नाम का अनमोल तोहफ़ा भाग्य शाली को मिलता है। मित्र के रूप में ईश्वर उसके साथ रहते हैं। शायद भगवान ने मेरे हाथों में मित्र रेखा बनाना भूल गए जब में दोस्त बनाने की कोशिश करू तो वो अनजान बैठे।
एका मेरी ममेरी बहन थी जब मे पन्द्रह साल की थी,तब पढ़ने के लिए मामा जी के घर गई पहले तो एका और में बहनों कितारह व्यवहार करती थी। परन्तु पता नही कब हम बहन की सीमा पार करके जिगरी यार बन गए
दोस्त से बहन बनते तो सुना था ,पर पहली बार बहन से दोस्त बनते देख रही थी।
हम रात - दिन साथ रहते साथ खाते- पीते ,हसते ,बाते करते ,साथ शैतानी भी करते ऐसा लगता था के दिन के 24 घंटे भी मस्ती के लिए काम है । मामी जी भी कहती,तुम दोनों हर समय साथ रहती हो फिर भी तुम हरी बाते समाप्त नहीं होती और हम हस देती। पता नहीं कब मैने उसे अपनी सुपर गर्ल बना लिया, वो मेरी आदर्श बन गई।
वो गुलाब की तरह कोमल, इमली की तरह खटी मीठी, मिर्ची की तरह तेज तरार, रोज कुछ नया करने का उमंग, क्रियात्मकता का पुंज, थोड़ी हटी और नकचढी भी थी वो सबसे अलग और सबसे नई शायद मेरी नजर में……..
मैने तो उसे अपना समझ लिया उसकी सभी सही - गलत, अच्छा - बुरा ,उसकी हर नादानी कभी कबार तो उसे बचाने के लिए मामी से डांट भी खाई।उसके हर सुख - दुःख में साय की तरह साथ रहती थी।
कुछ समय पश्चात मुझे महसूस हुआ एका को में बहन से अधिक मानने अलग थी।
अब वो हुआ जो में नहीं चाहती थी,एका में अहंकार आने लगा वो अभिमानी होने लगी थी। उसके अभिमान हमारी दोस्ती की डोर को कमजोर कर रहा थी। लगा रहा था उसके जीवन में मेरा कोई अस्तित्व ही नहीं था फिर भी वो मेरी सुपर गर्ल थी।
एक रोज एका ने अपनी जलन और अभिमान के चलते अपने नई दोस्त के समक्ष मेरे आत्म स्वाभिमान को ठेस पहुंचाई। वो जहर में डुबोए हुए शब्द आज भी मेरे कानो में चुभ रहे हैं।उसे मुझे अपने दोस्तो के सामने बहन कहने में शर्म आ रही थी क्योंकि में गांव में रहती थी।इस तरह हमारी दोस्ती टूटने लगी, बिखरने लगी हम घर में हाउसमेट्स की तरह रहते थे बाते तो होती थी पर हा, हूं में ही। पर फिर भी वो मेरी सुपर गर्ल थी और आज भी है…………………..
कहते है उस इंसान को मानना मुश्किल है जो रूठा भी ना हो,और बात भी ना करे। और मेरे साथ ये कहावत सही साबित हुई।मै प्रेम वश हमारे रिश्ते को पहले की तरह ठीक करना चाहती थी पर मुझे अनुभव हो रहा था की विधाता ने हमारी रिश्ते की समय सीमा इतनी ही तय की थी। कुछ समय पश्चात में गांव पुनः लोट आई उस सम्बन्ध को छोड़ कर जैसे गई वैसे ही बिना मित्र के…………..…..

परन्तु चाहे जो भी हो वो मुझे अपना मैने या ना माने
वो मेरी सुपर गर्ल है,थी, और रहेगी। मैने एक तरफा प्यार सुना था पर आज एक तरफा दोस्ती देखी है।
साथ ना होकर भी साथ है हम। वो पल जो हमे साथ गुजारे , वो हसी जो हमारे होठो पर साथ आई वो सिर्फ मेरी यादें हैं………………

मैं आंखे आशु से भरने ही वाले थे कि लीना का फोन बजा उसकी माता ने उसे तुरन्त बुलाया, और लीना चली गई । मेरी यादें मेरे सीने में ही रह गई और दोस्ती के मीठे फल इन आंखों में…..…………