...

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फ्री के पास
रेलवे में नौकरी करती हो, सही है यार तुम्हे तो फ्री के पास मिलते होंगे।
अक्सर लोग ये बोल कर चले जाते हैं और मैं सोचती हूं की क्या सच में मुझे फ्री में मिलता है ये?
आज सोचा की लिख दूं इस फ्री के पास के पीछे का सच तब शायद समझ पाएं तमाम लोग की फ्री में कुछ भी नहीं मिलता।

जब सर्दी की सर्द स्याह रात में
तुम अपने कमरे से
बॉथरूम तक का सफर
करने से कतराते हो
उस वक्त मैं
किसी को घर से मीलों दूर
चन्द खुशियों की तलाश में ले जा रही होती हूं
किसी को अपनो के करीब ला रही होती हूं
हां जी साहब!
उस वक्त मैं ट्रेन चला रही होती हूं।

जब जून की दोपहर में
तुम घर के किचन में
चाय भर बनाने
जाने से कतराते हो
बाहर का तापमान
50° से ज्यादा हो गया है
किसी यार को बताते हो
तुम्हारे चाय का सामान
मैं एक शहर से
दूसरे शहर तक
पहुंचा रही होती हूं
हां जी साहब!
उस वक्त भी मैं ट्रेन चला रही होती हूं

तुम अपने घर वालों के साथ जब
वक्त बिता रहे होते हो
खुश होते हो और
होली दिवाली मना रहे होते हो
मेरे घर में मां बीमार है
और मैं दूसरे शहर में होती हूं
दिल में अजीब सी घुटन होती है
बीच सफर में तुम्हारा
सफर नही छोड़ पाती हूं
हां जी साहब!
उस वक्त भी मैं ट्रेन चला रही होती हूं

मिलती हैं मुझे चन्द
सुविधाएं तमाम मुश्किलों के बदले
मैं उसके लिए अपनी
जिंदगी लुटाती हूं
फ्री में नहीं मिलता
कुछ भी यहां
चलो आज तुमको बताती हूं
मैं सारे त्योहार अक्सर
रास्ते में बीता रही होती हूं
हां जी साहब!
उस वक्त भी मैं ट्रेन चला रही होती हूं!

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