साहिर लुधियानवी और ज़िन्दगी अपनी
साहिर लुधियानवी जी की रचनाओं से मेरा परिचय उस समय हुआ जब हिन्दी फिल्में देखने और समझने लगा था...धीरे धीरे ये परिचय एक रिश्ते में तब्दील होने लगा और रिश्ता भी ऐसा की जीवन जीने का नजरिया बन गया.
"मैं जिंदगी का साथ निभाता चला गया
हर फिक्र को धूँए में उड़ाता चला गया"
इस गीत को गुनगुनाते हुए ना जाने कितनी साँसें मैंने उड़ा डाली थी धूँए में.........एक खिलंदड़पना, जमाने के रिवाजों से लापरवाह रहना मेरी आदत बन गया.
जब जीवन में रुमानियत दाखिल हुई ,भीनी भीनी खुशबू और ठंडी बयार का अहसास लेकर ....मेरा मन उसको हर वक्त अपने पास रखना चाहता और जब वो देर होने की दुहाई दे कर जाने लगती, लबों पर स्वतः ही ये नगमा थिरक उठता था :--
अभी ना जाओ छोड़कर,
के दिल अभी भरा नही...
और वो...
"मैं जिंदगी का साथ निभाता चला गया
हर फिक्र को धूँए में उड़ाता चला गया"
इस गीत को गुनगुनाते हुए ना जाने कितनी साँसें मैंने उड़ा डाली थी धूँए में.........एक खिलंदड़पना, जमाने के रिवाजों से लापरवाह रहना मेरी आदत बन गया.
जब जीवन में रुमानियत दाखिल हुई ,भीनी भीनी खुशबू और ठंडी बयार का अहसास लेकर ....मेरा मन उसको हर वक्त अपने पास रखना चाहता और जब वो देर होने की दुहाई दे कर जाने लगती, लबों पर स्वतः ही ये नगमा थिरक उठता था :--
अभी ना जाओ छोड़कर,
के दिल अभी भरा नही...
और वो...