...

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पंखा

Akku

आज तुम्हारी याद आ रही है लग रहा है कि तुम कोई परेशानी में हो बार - बार तुम्हारा चेहरा नजरों के सामने आ रहा और बाकी जो कुछ भी है सब कुछ धुंधला हो जा रहा है । मुझे नहीं मालूम कि क्या बात है लेकिन ये बेचैनी न सुकून से एक जग बैठने दे रही है न ही किसी काम में मन लग रहा है । सोचती हूं दौड़ कर तुम्हारे पास आऊं और तुम्हे जोर से गले से लगाकर तुमसे सवाल करूं , "तुम ठीक तो हो ?" तुम कहते थे ना कि मैं जब भी परेशान होता हूं तुमको पता चल जाता है और बस मेरे पास आने से ही सब ठीक हो जाता है और दो बातें करके दुनिया भर की खुशी हासिल होती है। मैं चाहती हूं कि आज तुमको गले से भींच कर ज़ोर से रो लूं लेकिन तुम ....
तुम तो वहां बैठे हो न उसके बिल्कुल करीब जहां से सारा सच देख सकते हो , तो देखो आज और पूछो खुद से कि तुम्हारे फैसले कितने सही थें ?और देखना तुम उनके दर्द और आंसू भी जो तुम्हारे एक मुस्कान की खातिर सब कुछ करने को हर पल आतुर रहते हैं । देखो और बताओं मुझे कि घर में बैठी मां और बाबा का क्या कुसूर था , छोटी और नन्हीं क्या उनके आंसू देख पा रहे हो ? जिस इज्ज़त और शोहरत की मान की खातिर तुमने ये फैसला लिया क्या देख पा रहे हो उसका सकारात्मक परिणाम । नहीं ना ..... तो फिर क्यों किया ऐसा ।
अब उधर बैठो और देखो एक बेबस मां की लाचारी और बूढ़े बाप की दुश्वारी , और देखना वहीं बैठे तुम बहनों और दोस्तों की चीख और सिसकियां भी ।

अरे रुको
ये क्या....?
आंसू ..... छी....
कसम हैं तुम्हें हम सब की अगर तुम्हारी आंख से एक कतरा निकला ।
जाओ और भूल जाओ हम सबको छोड़ दो हमें हमारे हाल पर । नहीं लगाना मुझे तुमको गले और नहीं करनी तुमसे कोई बात ।
क्या कहा अपनापन ..... हम सब से है ....
क्या ?? हम अपने हैं
हहाहा......
या अपना था तुम्हारा वो कमरे के बीच लटकता "पंखा"।

©अनन्या राय पराशर© Ananya Rai Parashar