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अलसाया दोपहर
आज फिर थोड़ा अनमाना सा था मैं, तो खिरकियां खोल बाहर निहारने लगा। अब लग रहा है रौशनी ही चहिए थी मुझे। बहुत अंधेरा जमा कर लिया था अंदर; कुछ धुंध भी है पर अंधेरा गहरा है!
कितनी मुक्त होती है हवा कोई रोकता नहीं इन्हें। बगीचे से गुजरे तो पत्तियां ताली पीट-पीटकर झूम उठती है, वरना तो पत्तियां भी विशालकाय पेड़ो के साथ अचल बेजान रहती है।

एक महीन धागा है पत्तियों में उलझा हुआ उस फटे पतंग के साथ जिसे हवा उड़ाकर लायी है कहीं से। किसी ने ज्यादा ढील दी होगी या बांधे जा रहा होगा लगातार.....!
ख़ैर जो भी हुआ हो! मुझे तो इससे हवा की दिशा जानने में मदद मिलती है; नहीं आप ऐसा ना माने की मैं पत्तियों की सरसराहट से अनुमान नही कर सकता बात बस सहूलियत की है। ताली तो दोनों हाथों से बजती है ना तो शुरुआत किसने कि ये समझ पाना थोड़ा मुश्किल होता है, पर ये झूल रहा धागा सही दिशा बता देता है मुझे!

अभी अचानक से दो छोटा हल्का मुरझाया पत्ता मेरे खिड़की पे पास-पास आ गिरा। कुछ चीटियां पहले से घूम-फिर रहीं थी, ये उनके काम का पहर है, एक चींटी लपककर उस ओर गई। आधे सूखे पत्ते को मुंह से क्षण भर लगाकर कुछ सोची फिर अनावश्यक समझकर झट से वापस हो गई साथ के दूसरे पत्ते को नजरंदाज कर दिया इसने। अनावश्यक समझकर ये अदना सी चींटी इससे कई गुणा बड़े पत्ते को अनदेखा कर देती है......पर मैं न कर सका! जिस पेंसिल को चबा चबाकर यह घटना लिख रहा था उसी से पीटकर कुचल डाला! चींटी का खेल खत्म और मेरी कहानी भी। 🐜 🤓


© rakesh_singh🌅