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कृतार्थ की किरणें
"उफ्फ! ये क्या मुसीबत है, एक भी ढंग के कपड़े नहीं हैं मेरे पास. सब के सब ओल्ड फैशन और चीप से दिख रहें है. अब क्या पहनूं मैं? ऑफिस की एनुअल पार्टी में जाने के लिए अपने कबर्ड उधेड़ते हुए कृष्णा बड़बड़ाई. "क्या हुआ कृषु क्यों परेशान हो? मैं कुछ मदद करूं" बेड पर फैले कपड़े और उधड़े अलमारी को देख राघव ने पूछा.
राघव की आवाज सुन कृष्णा कबर्ड बंद कर झल्ला कर बोली. "आप क्या मदद करोगे मेरी, हर महीने सोचती हूं इस बार खर्चों  से कुछ बचे तो कुछ नई ड्रेसेस, इमिटेशन ज्वेलरी  ले लूंगी. मगर हर बार का एक ही रोना ना नौ मन तेल होता है ना राधा नाचती है. इस दो टेक की जॉब से करूं तो क्या करूं? कबर्ड शादी की पुरानी साड़ियों से भरी पड़ी है. साथ में दो एक ओल्ड फैशन सूट पड़े हैं. ऑफिस  में सब के टिपटॉप ड्रेसेस और  ज्वेलरी देख मुझे बेहद हीनता महसूस होती है. यार  मैं तो इनमें से कुछ भी पहन कर चली  जाऊं मगर मेरी शुभचिंतक सहकर्मी मुझे ये याद दिलाने  से  नहीं चूकते कि लास्ट टाइम मैंने इसे कब पहना था और ये डिजाइन आउट ऑफ फैशन होते हुए भी मुझ पर कितनी जंच  रही हैं ...." कहते हुए कृष्णा रुआंसी सी हो गई. राघव ने एक सरसरी नजर अपनी कृष्णा पर दौड़ाया .. साधारण सी साड़ी गले में  एक हल्का सा मंगलसूत्र.. ‘सही ही तो कह रही है कृष्णा पता नहीं इसने आखरी बार कब नए  गहने कपड़े लिए थे. पर मैं भी क्या करूं  दो लोगों की हाड़ तोड़ मेहनत के बाद भी इस आमदनी में घर के खर्चे पूरे ही नहीं पड़ते ’... मन ही मन सोचते हुए राघव उठ कर कबर्ड के पास गया और उसे खोल कुछ ढूंढने लगा. कृष्णा बिस्तर पर बैठे– बैठे राघव को ही देख रही थी. थोड़ी देर की ऊहा पोह के बाद राघव ने धीरे से अपनी पसंदीदा हरे और सफेद रंग की प्रिंटेड सिल्क की साड़ी निकाल उसके कांधे पर रख मुस्कुराते हुए कहा "जानता हूं साड़ी पुरानी है. तुमने कई बार पहनी भी है. पर इसे तुम जितनी बार भी पहनती हो बिल्कुल नई हो जाती हो और सुनो आज तुम अपने बालों में जुड़ा मत बनाना. आज इन्हें तुम खुले रखो और जहां तक ज्वेलरी का सवाल है तो इस मंगल सूत्र को तुम आज यहीं खूटी पर टांग जाओ बस कानों में  शादी वाले झुमके डाल लो. फिर देखो मेरी कृषु का कमाल...... कैसे सब फैशनेबल छोरियों पर भारी पड़ती है. बस सारे...