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मैं और चांद पार्ट -1

"नया अर्द्धरात्रि मित्र"


कुछ समय पहले की बात है, जब ग्रामीण क्षेत्रों में स्मार्टफोन ज्यादा प्रचलित नहीं थे और मोबाइल भी घर में एक ही था, वो भी पापा के पास ही रहता था, तब दिन में तो दोस्तों के साथ समय बिता लेता था, परंतु रात में अक्सर अकेला ही रहता था। जैसे-जैसे उम्र बढ़ती गई, क‌ई परेशानियां और सवाल मेरे मन को घेरने लगे, रात में अक्सर छत पर बैठकर सोचता रहता कि, मेरे साथ ऐसा क्यों हो रहा है?, मेरे दोस्त मुझसे दूर क्यों होते जा रहे हैं?, सब इतने खुश रहते हैं और मेरी कोई इच्छा पूरी ही नहीं हो पाती। इस तरह के ख्यालों की उधेड़बुन में जाने कब रात गुजर जाती और फिर अगली रात दिन भर की परेशानियां लेकर बैठ जाता। ऐसे ही क‌ई रातें गुजरती ग‌ई।

फिर एक पूनम की रात मैं यूं ही बैठा हुआ था, कि कानों में एक हल्की-सी आवाज सुनाई दी - "क्या हुआ?", मैं उठकर चारों ओर देखने लगा कि कौन है?, पर कोई दिखाई नहीं दिया। तभी फिर सनसनाती...