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मेरे हमसफर
रात के 9 बजे थे। खिड़की के सामने लगे स्टडी टेबल पर अपने विचारों को पन्नों पर उकेरती हुई लता कभी सपनों में डूब जाती, तो कभी हकीकत की दुनिया में उसी खिड़की के बाहर अपने बगीचे में झांकती जहाँ कभी किसी जुगनू का चमकना दिखता था, तो कभी झींगुरों की झनझनाहट सुनाई पड़ती थी, वर्षा की बूंदों की आवाज भी मध्यम हवा के साथ आ रही थी। बेशक बाहर घुप्प अंधेरा था, इतना अंधेरा मानो उस अंधकार में खड़ा व्यक्ति अपने हाथ भी न देख सके, खैर लता के लिए कुछ भी नया नहीं था क्योंकि उसी अंधेरे का अंश कहीं ना कहीं उसके जीवन में भी था। लता उस अंधकार का आत्मसात करते हुए टेबल पर रखे पेपर के साथ अपने ही जीवन के अंधकार से लड़ रही थी, वह जो लिख रही थी उसका शीर्षक था "मेरे हमसफर"।



कभी सिसकती तो कभी अपने दुपट्टे के सहारे अपने आँसुओं को रोकने की भरपूर कोशिश करती, वो तो सही था की टेबल लैम्प के प्रकाश टेबल पर तो थे पर सारा कमरा अँधेरे के साये में डूबा था यही वजह थी कि उसके...