...

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खुद की खैरियत
कोई भला क्यों न सुनना चाहे खुदको ,
क्यों न मिलना चाहे खुद से ,
हम तो मिलवा देते है खुदको किसी और से ,बड़े अदबों से ,पर न जाने क्यों खुद से मिलते ही नही आरसो से ,

मेरी जान फना किसी और पर होना ,
पहले खुद से मिलना बाद में किसी और का होना ,
खुद को पराया कर दिया , किसी और की चाहत में , अब खोकर खुद को किधर जाओगे,
अरे जाओ खुद से मिलो मिया,
तुम खुदमे ही दुनिया पाओगे ।
गहरा समंदर है मन , खुदको खोज के मोती ही पाओगे ,
मेरी बात को दिल खामोशी से सुने जा रहा था ,
अब दिल फुले नहीं समा रहा था , नादान भी तो कितना है .
कभी आसमान में उड़ना है तो कभी खयालों में खोना है , कंभक्त चीज ही ऐसी है की इधर तो कभी उधर भी होना है ,
जज्बाती कभी तो कभी हर किसी के लिए मय्यस्सर भी होना है ,
नाराज कभी तो कभी हैरान भी होना है ,
तन्हाई में अकेला तो कभी खुद में ही खोना है ।
हैरान ,परेशान ,खामोश तो गुमसुम न जाने क्या क्या ,
अब तो मैं भी परेशान हो गई समझते समझते इसको ,
अब दिल से तो मिल लिया मेने ,
अब सोचा ख़ुद से भी मिल लू।
खुद को आईने में देखा , खुदको मायस्सर होने के लिए ,
कई दफा सोचा , बेदखल कर दू जज्बातों से खुद को ,
दफना दू ख्वाइशों को ,
और आवारगी की सैर पर निकल जाऊ,
अब जंग तो खुद से थी , मुह मारी तो खुद से थी ,जंग जारी तो खुद से थी ,
to be continued......



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