संक्रांति काल- पाषाण युग ९
किसी तरह काफी प्रयास के बाद अम्बी उस अजनबी को अपनी गाड़ी मे खींच कर गुफा पर ले आई।अम्बी को आते देख सभी लडके लडकियां सभी दौड कर उसके पास आ गए और कोतुहल के साथ गाड़ी पर पडे अजनबी को देखने लगे।जादौंग को आने मे अभी वक्त था,पर सारकी जो अभी अपने कुत्ते को माँस के टुकडे खिला रही थी कोलाहल सुन कर आ गई। अजनबी को देखते ही सारकी के चेहरे पर पहले हर्ष के और फिर तुरंत ही चिंता के भाव स्पष्ट नजर आने लगे । अम्बी ने उसके चेहरे के बदलते भावों को देख लिया था ,उसने सारकी की ओर प्रश्नवाचक नजरों से देखा
"गौ......रांग...।" ,सारकी के मुख से निकला , और वो दौड़कर मूर्छित पडे गौरांग के समीप आकर घुटनों के बल बैठ गई। सारकी गौरांग के सीने पर हाथ रखकर शायद उसके जीवित होने की पुष्टि करना चाहती थी तभी उसको छूकर देखने के बाद चेहरे से चिंता के निशान लुप्त हो गए थे।
अब आगे : -
अनजानी आशंका
सूरज पूरी तरह छिपा नहीं था पर धुँधलका गहराने लगा था, छोटे बच्चे अपने घर लौटते परिंदों के पीछे कोलाहल करते दौड रहे थे , तीनों बडी लडकियाँ आग जलाने और रात को खाने के लिए माँसादि सेंकने मे लगी हुई थी कोई मशक़ मे पानी भर के ला रहा था तो ,कुछ लडके आग के लिए लकडियाँ इकट्ठी कर रहे थे । अम्बी गुफा से कुछ दूरी पर खडी हुई, जादौंग की प्रतिक्षा कर रही थी। साँझ के वक़्त यही तय उपक्रम था अम्बी का....उसके लिए जादौंग की इस तरह प्रतीक्षा करना एक उत्सव सा था ।
सूरज के छिपते ही जादौंग का गुफा पर आ जाना एक नियमित प्रक्रिया बन चुकी थीअम्बी के लिए । कभी कभी वो सोचती कि , शायद जादौंग ने खुद को एक डोर से सूरज के साथ बांध रखा है और इसी लिए वो डूबते सूरज के साथ खिंचा चला आता है या फिर इस आग के गोले को वह खुद खींच के लाता है। वो सोचती कि , उसके जीवन का सूर्य भी जादौंग के साथ ही उदित है ।
वो दूर से मदमस्त चाल से चला आ रहा था , एक कन्धे पर शिकार की गाड़ी से बंधी रस्सी का दूसरा छोर था जिसे नीचे से अपने पंजे मे सख्ती से लपेट रखा था और दूसरे कंधे पर भारी खाल उठा रखी थी। आगे चल रहे कुत्तों के साए उसकी छवि को और आकर्षक कर रहे थे।
"वाकई जादौंग अपने कबीले की मादाओं को अपने पीछे पागल बना देता होगा ....किसी बडे मैमथ जैसा मजबूत और सिंह सा खूंख्वार ,सारकी का क्या दोष है इसमें...!" अम्बी जादौंग को निहारती हुई सोच रही थी।
सभी लडके लड़कियाँ जादौंग को घेरकर उसके चिपट रहे थे।तभी सारकी उसका हाथ पकड़ गुफा मे खींचने लगी ,पर जादौंग अम्बी की ओर देख रहा था ,मानो उसकी अनुमति माँग रहा हो।अम्बी ने आँखों से स्वीकारोक्ति दी
वो सहज भाव से सारकी के साथ चल दिया। गौरांग मूर्छा से उठ चुका था मगर शरीर में शक्ति नहीं थी उसके।एक दूसरे के सम्मुख होते ही दोनों के चेहरे चमक उठे ।
चिंता ,हर्ष ,भय, प्रेम , विषाद , क्रोध , ना जाने कितने भावों का उतार चढाव हुआ जादौंग के पथरीले चेहरे पर जब गौरांग ने उसे अपने साथ घटित घटनाक्रम और आने वाले खतरे से अवगत कराया ।अन्त मे चिंता की...
"गौ......रांग...।" ,सारकी के मुख से निकला , और वो दौड़कर मूर्छित पडे गौरांग के समीप आकर घुटनों के बल बैठ गई। सारकी गौरांग के सीने पर हाथ रखकर शायद उसके जीवित होने की पुष्टि करना चाहती थी तभी उसको छूकर देखने के बाद चेहरे से चिंता के निशान लुप्त हो गए थे।
अब आगे : -
अनजानी आशंका
सूरज पूरी तरह छिपा नहीं था पर धुँधलका गहराने लगा था, छोटे बच्चे अपने घर लौटते परिंदों के पीछे कोलाहल करते दौड रहे थे , तीनों बडी लडकियाँ आग जलाने और रात को खाने के लिए माँसादि सेंकने मे लगी हुई थी कोई मशक़ मे पानी भर के ला रहा था तो ,कुछ लडके आग के लिए लकडियाँ इकट्ठी कर रहे थे । अम्बी गुफा से कुछ दूरी पर खडी हुई, जादौंग की प्रतिक्षा कर रही थी। साँझ के वक़्त यही तय उपक्रम था अम्बी का....उसके लिए जादौंग की इस तरह प्रतीक्षा करना एक उत्सव सा था ।
सूरज के छिपते ही जादौंग का गुफा पर आ जाना एक नियमित प्रक्रिया बन चुकी थीअम्बी के लिए । कभी कभी वो सोचती कि , शायद जादौंग ने खुद को एक डोर से सूरज के साथ बांध रखा है और इसी लिए वो डूबते सूरज के साथ खिंचा चला आता है या फिर इस आग के गोले को वह खुद खींच के लाता है। वो सोचती कि , उसके जीवन का सूर्य भी जादौंग के साथ ही उदित है ।
वो दूर से मदमस्त चाल से चला आ रहा था , एक कन्धे पर शिकार की गाड़ी से बंधी रस्सी का दूसरा छोर था जिसे नीचे से अपने पंजे मे सख्ती से लपेट रखा था और दूसरे कंधे पर भारी खाल उठा रखी थी। आगे चल रहे कुत्तों के साए उसकी छवि को और आकर्षक कर रहे थे।
"वाकई जादौंग अपने कबीले की मादाओं को अपने पीछे पागल बना देता होगा ....किसी बडे मैमथ जैसा मजबूत और सिंह सा खूंख्वार ,सारकी का क्या दोष है इसमें...!" अम्बी जादौंग को निहारती हुई सोच रही थी।
सभी लडके लड़कियाँ जादौंग को घेरकर उसके चिपट रहे थे।तभी सारकी उसका हाथ पकड़ गुफा मे खींचने लगी ,पर जादौंग अम्बी की ओर देख रहा था ,मानो उसकी अनुमति माँग रहा हो।अम्बी ने आँखों से स्वीकारोक्ति दी
वो सहज भाव से सारकी के साथ चल दिया। गौरांग मूर्छा से उठ चुका था मगर शरीर में शक्ति नहीं थी उसके।एक दूसरे के सम्मुख होते ही दोनों के चेहरे चमक उठे ।
चिंता ,हर्ष ,भय, प्रेम , विषाद , क्रोध , ना जाने कितने भावों का उतार चढाव हुआ जादौंग के पथरीले चेहरे पर जब गौरांग ने उसे अपने साथ घटित घटनाक्रम और आने वाले खतरे से अवगत कराया ।अन्त मे चिंता की...