...

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अलविदा
उस दिन काॅफी हाउस में तुम अपनी मंगेतर के साथ बैठे थे ।
मेरे वहाँ आते ही तुम्हारे चेहरे का रँग क्यूँ उड़ गया था ।
तुम्हारे चेहरे पर तनाव साफ दिख रहा था ।
क्या तुम्हे डर था कि कहीं मैं तुम्हारी टेबल पर न आ जाऊँ ।
तुमसे बात न करने लग जाऊँ या उससे झगड़ न पडूँ ।
सच में अब भी नहीं समझ पाए तुम मुझको ।
तुम्हारी दुविधा मैं समझ गई थी ।
तुम सहज नहीं लग रहे थे
इसलिए वो कॉफी का ऑर्डर कैंसिल किए बिना ही मैं बाहर आ गई थी
मैं जानती हूं कि मैं अतीत हूँ तुम्हारा।
मैं कभी तुम्हारा भविष्य नहीं बनना चाहती ।
इस शहर से दूर जा रही हूँ मैं ।
कभी अपने दिल में मेरा ख्याल न लाना।
और सुनो..
कॉफी हाउस के बाहर फूलों का गुलदस्ता अपनी दोस्ती की अंतिम भेंट के रूप में रख कर जा रही हूँ
खुश रहना।
अलविदा ।

© Shivani Singh