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तेरी-मेरी यारियाँ ! ( भाग-14)
वही पार्थ और गीतिका देवांश को ऐसे जाता देखकर वह दोनो एक-दूसरे को ताली देकर हँसने लगते हैं।

पार्थ :- हँसते हुए,,,,,, बाय गीतिका कल तालाब के पास वाले पार्क मे मिलते हैं।

गीतिका :- ठीक है पार्थ चल बाय अब मै जा रही हूँ।

पार्थ :- हाँ गीतिका और कल जरूर आना।

गीतिका मानवी के साथ वहाँ से चली जाती है,,,,वही पार्थ कार मे जाकर बैठ जाता है और पार्थ देवांश भी वहाँ से चले जाते हैं।

शाम 6:00 बजे,,,,,, निवान के घर।

निवान अपने स्कूल के बैग को एक तरफ रखते हुए अपनी माँ से पूछता है।

निवान :- माँ,,,,, क्या मैं थोड़ी देर बाहर खेलने चला जाऊँ।

गीता :- नही,, निवान मुझे आज काम करने जाना है।

निवान :- पर क्यों माँ आप मुझे बाहर खेलने के लिए क्यों मना कर रही हैं।

गीता :- तू बाहर खेलने जाएगा,,,,, तो वाणी का ध्यान कौन रखेगा।

निवान :- तो माँ आप वाणी को काकी के घर छोड़ देना।

गीता :- डाँटते हुए,,,,,, तू पागल हो गया है क्या' कैसी बाते कर रहा है। रोज-रोज वाणी को काकी के घर छोड़ दूँ और वैसे भी आज तेरी मंजरी काकी घर पर नही है।

निवान :- मुँह लटका कर,,,, ठीक है माँ फिर आप जाओ और जल्दी आना मै वाणी का ध्यान रखूँगा।

गीता :- चल ठीक है और वाणी तुम भी भईया को ज्यादा परेशान मत करना।

इतना बोलकर गीता वहाँ से चली जाती है और निवान और वाणी घर में ही खेलने लगते है।

रात 8:00 बजे,,,,,, पार्थ का घर

घर के हॉल मे सोफे पर बैठकर पार्थ अपने स्कूल का काम कर रहा था की तभी देवांश भी वहाँ आकर बैठ जाता हैं और अनुराधा से बोलता है। माँ,,,,,खाना दे दो बहुत भूख लगी है। फिर पार्थ की ओर देख कर उससे बोलता है।

देवांश :- ओर भाई,,, आज सूरज कहाँ से निकला है।

पार्थ:- काम करते-करते,,,,,जहाँ से निकलता है और अब तो डूब भी गया होगा।

देवांश :- हँसते हुए,,,सही में मुझे तो लगा था की पश्चिम से निकल कर पूर्व मे डूब गया।

पार्थ :- मुस्कुराते हुए,,, गीतिका सही बोलती है। आपकी आँखे खराब है।

देवांश :- पार्थ को देखते हुए,,,,क्या बात कर रहा है,,, चल कोई नही। अच्छा पार्थ सुन,,,,।

पार्थ :- हाँ,,,भईया बोलो।

देवांश :- फोन चलाते हुए,,,,,वो मेरे कॉलेज के बाहर डॉक्टर का फ्री कैंप लगा है। वो दिमाग बाँट रहे है चलना कल मेरे साथ तुझे ज्यादा जरूरत है।

पार्थ :- देवांश को देखते हुए,,,,,, माँ मुझे भी खाना दे दो।

देवांश फोन चलाते हुए पार्थ से बोलता है।

देवांश :- एक बात बता तुझे वही काम क्यों करना होता है जो मैं करता हूँ।

पार्थ :- अच्छा,,,,,,भूख सिर्फ आपको लगती है।

देवांश :- हँसते हुए,,,,,अच्छा मेरा ही डायलॉग मेरे ही ऊपर, यह भी सही है।

पार्थ :- आपको हमेशा ऐसी ही बात क्यों करनी होती है।

देवांश:- अरे वाह,,,,,बोल भी तो देख लो कौन रहा है जिसके दोस्त भी ऐसे ही है।

पार्थ :- चिड़ते हुए,,,,,,,भैया आप गीतिका को बीच मे क्यों ला रहे हो।

देवांश :- हँसते हुए,,,,ओह बच्चे को बुरा लग गया।

तभी अनुराधा पार्थ और देवांश के लिए खाना लाती है और खाने को डाइनिंग टेबल पर रखते हुए बोलती है।

अनुराधा :- गुस्से से,,,,,,,तुम दोनो आपस मे सारे दिन लड़ते ही क्यों रहते हो तुम्हारे पास कोई और काम नही है।

पार्थ :- लेकिन माँ,,,,,,,,,,,,,,,

अनुराधा पार्थ को बीच मे ही टोकती हुई बोलती है।

अनुराधा :- चुप,,,,,,,,,,, अब तुम दोनो की आवाज नही आनी चाहिए खाना खाओ चुपचाप और टहल के अपने कमरे मे जाओ।

तभी मुख्य द्वार की बेल बजती है और देवांश अनुराधा से पूछता है।

देवांश :- माँ,,,,,,, इस समय कौन है।

To Be Continue Part - 15


© Himanshu Singh