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तीन बेटियाँ, अभिशाप या वरदान
घर के बाहर से ऑटो पकड़ कर जैसे तैसे अपने शहर की गाड़ियों से खचाखच भरी सड़कों को पार करके किसी तरह रेलवे स्टेशन पहुँचा। आज फिर समीर एक लंबे सफर पर जाने के लिए निकला था। स्टेशन पहुँच कर पूछताछ खिड़की से मालूम पड़ा कि उसकी ट्रेन एक घण्टा बाद आएगी। उस एक घण्टे के समय को काटने के लिए समीर ने सोचा क्यों न स्टेशन पर थोड़ी चहलकदमी कर ली जाए। थोड़ी देर चहलकदमी करने के बाद उसे अहसास हुआ कि अभी भी ट्रेन के आने मैं पचास मिनट बाकी थे। इसी को सोच कर वो वेटिंग रूम में जाके बैठ कर बाकी लोगों के जैसे अपनी ट्रेन का इंतज़ार करने लगा। जब ट्रेन के आने का की घोषणा हुई तब उसके मन को एक अलग ही खुशी की अनुभूति हुई। ट्रेन के आते ही वह तुरंत उसमें चढ़ गया और अपनी निर्धारित सीट पर पहुँच कर अपना समान वहाँ रख कर बैठ गया। चंद मिनटों में ट्रेन उस स्टेशन को छोड़ आगे बढ़ चली। अपने समीर ने गौर किया उसके सामने वाली सीट पर एक परिवार बैठा था। परिवार में पति पत्नी के अलावा उनकी तीन बेटियाँ भी थी। जिसमें सबसे बड़ी बेटी लगभग दस साल मँझली बेटी सात-आठ साल और सबसे छोटी बेटी चार-पाँच साल की होगी। उन लोगों की आपसी बातचीत से उसे मालूम पड़ गया था सबसे बड़ी बेटी का नाम आयशा मँझली का सोनम और सबसे छोटी का हीना था। अचानक आयशा ने अपने पिता से कहाँ उसे इस साल स्कूल के लिए नया बैग चाहिए। जिस पर उसके पिता ने कोई जवाब नहीं दिया। आयशा ने फिर अपनी बात को दोहराया तो उसके पिता ने उसे डाँटकर चुप करवा दिया। यह देखकर आयशा की माँ ने उसे ही चुप हो जाने का इशारा किया। इसी सफर में ट्रेन आगे बढ़ती जा रही थी कुछ लोग उतरते कुछ चढ़ते। कुछ समय बाद सबसे छोटी बेटी हीना नींद से जागी और अपने पिता की गोद में जाके बैठ गई। उसके पिता ने भी उसे बड़े प्यार से अपनी गोदी में बैठ लिया और उससे बात करने लगें। पिता बेटी की बातचीत में एक बार भी हीना के पिता ने उसे उसकी किसी बात पर न डाँटा और न ही किसी तरह का गुस्सा दिखाया। ये सब दृश्य उसकी दोनों बड़ी बहनें और उसकी माँ भी देख रही थी। अभी थोड़ी देर पहले आयशा को जिस पिता ने डाँटा था उसका इस तरह अपनी दूसरी बेटी को प्यार करना आयशा को पसंद नहीं आया। वो उदास चेहरा लिया ट्रेन के बाहर देखने लगी और सोनम अपने पिता की हरकत से हैरान नज़र आ रही थी। परिवार के प्रत्येक सदस्य को भावकर समीर मन ही मन में उन सबके के प्रति अपनी राय कायम करने लगा।
उसने सोचा पिता का बड़ी बेटी के संग इस तरह का बर्ताव उसे अभी से यह अहसास करवाने के लिए काफी है कि बेटी होना शायद पाप नहीं होता हो पर घर की सबसे बड़ी बेटी होना कोई सम्मान की बात नहीं बल्कि अभी से उसे उसकी जिम्मेदारी का अहसास करवाता है। ज़िम्मेदारी परिवार को संभालने की, परिवार की शान को बनाये रखने की, परिवार को सोचकर खुलकर न जीने की। इसी तरह उसने सोचा कि मँझली बेटी का जीवन उस इंसान की तरह है जिसके आगे कुँआ और पीछे खाई है वह हीना के लिये प्यार देखकर अपने पिता से अपनी बात कहना तो चाहती है पर आयशा के लिए अपने पिता का गुस्सा देखकर शांत हो जाती है। सबसे छोटी बेटी जिसे अच्छे बुरे का अभी कुछ अहसास नहीं उसका पिता उसे अपनी किस्मत मानकर अपनी बेटी की तरह देखता है या बेटे की चाह में हुई तीन बेटियों को बेटे से कम नहीं मानता यह तो आने वाला कल ही बतायेगा। समीर की नज़र जब उनकी माँ पर गई तो उसे ख़्याल आया की वह किस तरह दुनिया के साथ साथ अपनें पति और घरवालों के ताने सुनती होगी बेटे के नाम पर। आख़िर में समीर को पिता का ख़्याल आया वह किस तरह खुद को इस बात के लिये राज़ी करता होगा कि उसके नसीब में बेटे का सुख नहीं लिखा पर वह जो सपनें बेटे के लिये बुने बैठा है वह अपनी बेटियों के लिए भी बुन सकता है। मन में चलती इसी उलझन में कब शाम हो गई उसे मालूम ही नहीं हुआ। शाम हुई तो समीर भी ट्रेन के बाकी लोगों के जैसे अपने बैग से अपना खाना निकालकर खाने लगा। थोड़ी ही देर में वह सो गया और सुबह उठकर देखा तो सामने वाली सीट पर बैठा परिवार उतर चुका था। समीर ने समय देखा और फ़ोन पर चेक किया अगला स्टेशन वहीं आने वाला है जहाँ उसे उतारना है।

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