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इंग्लैंड के गोल गप्पे
मैं, रेणु जब से भारत से लन्दन आई हूँ, अजीब सी पशोपेश मे हूँ , लन्दन जो कि विश्व का अग्रणी शहर है, इसको जाने बिना मैं यह सब नहीं लिख सकती थी। लोग लाखों रुपये खर्च करके यहाँ आते हैं और मैं पति के साथ साथ,पर  कहते हैं न कि हर चीज़ की एक कीमत होती है , पति की नौकरी ही मुझे यहाँ खींच लाई। और क्या कीमत मैं चुका रही हूँ, आपको बताये बिना चैन नहीं मिलेगा मुझे।
        आ तो गई और   फिर कुछ ऐसा संयोग बना कि पति समीर को यहाँ का पास पोर्ट ही मिल गया यानी अब हम यूरोप के स्थाई निवासी बन गए है और भारत से नाता भी नहीं टूटा क्यों कि भारत जाने में भी कोई दिक्कत नहीं होती।
     अब मूल बात पर आती हूँ, यहाँ के तौर तरीके ऐसे है कि ज़रा ज़रा सी बात पर वकील से बात करते हैं या धमकी तो दे ही देते हैं यानी पार्किंग ठीक नहीं लगी तो वकील, घर से धुएं का एमिशन ज्यादा तो वकील, टी वी एंटीना की छाया किसी पड़ोसी के कपड़ों पर पड़ रही हो वकील,किस तरह गिनवाऊँ यहाँ की बातें? भारत को इसलिए भी मिस करती हूँ कि एक भाई चारा सा बना रहता है वहाँ हर एक बात में। दिल की बात किसी से कह सकती हूँ न।
     अब पड़ोसी  पड़ोसन को ही ले लो, यह जो बाजू वाली हैं न, मूल रूप से जर्मनी के हैं और यहाँ पर  आ कर बस गए। उस दिन मेरे कपड़े बाहर सूख रहे थे तो मेरे फ्लैट की घण्टी बजी, इन्हीं मैडम ने बजाई थी, बोली,
    "ओह आप भारत वाले है न, आपके देश की मैं फेन हूँ पर आप को नहीं मालूम कि आपके सूखते कपड़े देख कर मेरा डॉग्गी परेशान हो रहा है, देखिये न भोंके ही जा रहा है, प्लीज़ अपने कपड़े उस कोने मे डाल दीजिये जहाँ से वो देख ही न पाए! "
      आप ही बताईये, मेरा घर, मेरी बालकनी या आंगन, इनको क्या पड़ी कि मैं अपने कपड़े कहाँ पर सुखाऊँ?
       ज़रा सा धुंआ निकला नहीं किचन से कि अलार्म बज जाता है, पूरी बारात आ जाएगी फायर वालों की, पूरी क्लास लेंगे और एक घण्टे लेक्चर सुनो इनका, ओह!
      यह नहीं है कि सब कुछ इसी तरह का है यहाँ पर, काफी कुछ भारत के लोग सीख भी सकते हैं ब्रिटेन से, जैसे पर्यावरण की रक्षा के कड़े मान दण्ड आदि। किसी बिल्डर को कोई छूट नहीं दी जाती अपनी मनमानी करने की, खुदाई के दौरान किसी को भी जीवों या चूहों आदि तक को नुक्सान पहुँचाने का कोई भी अधिकार नहीं है, सख्त कारवाई भी की जाती है, अगर कोई ऐसा करता है। पर्यावरण को नुकसान पंहुचाना किसी भी सूरत में नियमों के विरुद्ध है !
      इन कोरोना के दिनों में कोई संबंधी भी मिलने आये तो बाहर से ही मिल सकता है, रात को रुकने की अनुमति नहीं है। (और पड़ोसियों की नजर हम पर ही लगी रहती है जैसे हम कोई रूल का उल्लंघन कर देंगे या करने वाले हैं)
      एक बात तो बताना भूल ही गई जो ज़रूरी है । मुझे और समीर को चाट आदि खाने की आदत है पर इसके लिए साउथ हाल जाना पड़ता है।इस सबके बावजूद हम जाते हैं और भारतीय स्टाल पर इसका मज़ा लेने की कोशिश करते हैं पर स्थानीय लोगों के लिए हम अजूबा ही बन जाते हैं, अब बताओ, गोल गप्पे के लिए मुँह तो पूरा ही खोलना पड़ेगा न? और वैसे तापमान शून्य से कम हो या दो डिग्री हो तो भी इनका मज़ा कम हो ही जाता है। तीन या चार पाउंड ( तीन चार सौ रुपए) की प्लेट है पर इंतने ठन्डे मौसम में, ओह, यही गोल गप्पे भारत में कितने स्वादिष्ट लगते हैं? यहाँ तो गला ठण्डा हो जाता है, उफ!
          तो मैंने अपने दिल की दास्ताँ सुना दी, लन्दन हो या न्यू यार्क, अपना देश ही है मस्त, चाहे कुछ भी हों समस्याएं पर हम दिल से कभी भी विदेशी संस्कृति आदि को नहीं अपना पाएंगे, दिल हमेशा अटका रहेगा देश मे, मेरे प्यारे भारत में जहाँ मैंने संस्कार पाए, जो मेरे दिल में बसता है, जो मेरे सपनों मे रहता है। भारत जाने के सपने तो हैं ही, वहाँ बिताए कुछ सप्ताह भी मेरे जीवन में नया रंग भर देते हैं, जय हिंद