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यहाँ सब चोर हैं
एक लघु कहानी है-
एक बार एक राजा ने एक व्यक्ति को रोटी की चोरी के दंड स्वरूप फांसी की सजा सुनाई। उसके पास अपने निर्दोष होने का सबूत नहीं था। अन्ततः एक निश्चित दिन उसे फांसी दी जाने वाली थी, तब राजा ने उसकी आखिरी ख्वाहिश के बारे में पूछा, व्यक्ति ने कहा महाराज मेरे पास सोने (गोल्ड) की फसल उगाने का तारीका है मैं पहले वो आपको बताना चाहता हूँ, लेकिन उसकी फसल तभी अंकुरित (जमेगी) होगी जिसे बोने वाले व्यक्ति ने अपने जीवन काल में कभी चोरी ना कि हो। महाराज बोले ठीक है।
अगले दिन सभी लोग एक खेत पर इक्क्ठा हुए, जब फसल बोने की बात आई तो महाराज के सभी दरबारी, मंत्रीगण, प्रजा एवं अन्य सभी पीछे हट गए बोले महाराज हमने अपने जीवन में कभी न कभी तो चोरी की है इसलिए हम ये फसल नहीं बो सकते। तब उस व्यक्ति ने महाराज से कहा कि आप स्वयं ही फसल बोये। लेकिन महाराज ने भी फसल बोने से इनकार कर दिया बोले एक बार हमने भी अपने अग्रज भ्राता के घर चोरी की थी मैंने फसल बोई तो ये जमेगी नहीं। तब वह व्यक्ति बोला कि महाराज फिर तो सभी लोगों को फांसी लगनी चाहिए क्योंकि चोरी तो सबने की है।
महाराज सोचने पर विवश थे अंततः उस व्यक्ति की फांसी माफ कर दी गयी।
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