...

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" तन्हाई "
कायनात में खुशियां छाई है
बस दिल के आंगन में तन्हाई है
क्या तुम मेहबूबा हो जो मुझसे मिलने आती हो
दिलों दिमाग में हर पल छाई रहती हो,
बेशक तुम लगती हो चंचल सोक हसीना
संग है तेरे अब तो मरना जीना
कहीं गमज़दा कहीं सुरभित शहनाई है
देख तुमको आँख मेरी भर आई है,
तुम बेवफ़ाई से कितनी अच्छी हो
छोड़ती नही दामन दिल की कितनी सच्ची हो
माशूका बन के लगती हो बहलाने
फिर प्यारी प्यारी सी बाहों में लगती हो सुलाने,
अपनी सौम्य पलकों से चूमती हो
तारुण्य बाला सी मद होके झूमती हो
ओ तन्हाई! तुम मेरी माशुम दुनियां में आ जाओ
फ़िर से तुम अफसाना बन जाओ,
उजड़े चमन की मेरी प्यासी सारिका लगती हो
अब तुम निश्छल प्रियतमा लगती हो
तेरी मौजूदगी का हरपल एहसास करता हूं
दीदार को तेरे आहें बेशुमार भरता हूं,
रातें बेज़ुबा है तेरी बातें ख़ामोश नहीं
पाके तुमको अब दिन रात का होश नहीं
वफ़ा के अंजुमन में कदम कदम पे धोखे हैं
पर ना जाने क्यूं इसमें इतने धोखे हैं,
अब मैंने तन्हाई का पल्लू थाम लिया है
उसकी आंखों का प्रणय जाम पिया है।

'Gautam Hritu'


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