...

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सच्चा प्यार !!
कहां कोई दिन अलग सा होता है
जिंदगी जब छोटी छोटी खुशियों की भी मोहताज होती है....जिंदगी ऊषा की गुजर रही थी या ऊषा ही जिंदगी को गुजार रही थी...ये बस उसका दिल ही जानता था....
जिसके लिए वो समर्पित थी उसे उसकी कोई परवाह नहीं थी....दिन भर तो घर के कामों में गुजर जाता था....हर शाम उसका अकेलापन उसे बेचैन करता था....इन्ही उलझनों में ऊषा को घर के सामने वाले पार्क में जाना और वहां अकेले बैठ कर वक्त गुजारना अच्छा लगता था....

उस पार्क मे अक्सर ही एक मेज पर वो बैठती थी उसे पता भी नहीं था कोई हर रोज ऊषा को और उसकी उदासियों को नोटिस करता था....

हर रोज उस पार्क में जब ऊषा आती वो ठीक ऊषा के पीछे बहुत दूर से बैठा उसे देखता रहता था.....कुछ वक्त गुजरा तो रजनीश ने सोचा अब तो वो अपने दिल का हाल ऊषा से बता के रहेगा.... पार्क की जिस मेज पर ऊषा बैठती थी आज उसी मेज...