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ख़ामोशी भाग ३
खामोशी एक अनजान आदमी सँग चलने के लिए न जाने कैसे तैयार हो गई।
शायद उसे उस पत्र के जरिये विश्वास
हो गया था शेखर पर।
रास्ते में वो अपरिचित व्यक्ति उसे बचपन से जुड़ी बातें बता रहा था।
खामोशी अपने बचपन की बातें सुन हँस देती।
ये बातें बाबा ने ही शेखर से बताई होंगीं।
मन ही मन ख़ामोशी सोच रही थी।
अब तो उसे पूरा विश्वास हो गया था।
हो न हो ये अपरिचित व्यक्ति बाबा से अवश्य मिले होंगें।
वो अपरिचित व्यक्ति उसे वहाँ ले गए जहाँ...