घुँघरु
मां बिना भी घर कहां घर लगता है। अब तो स्कूल की छुट्टियों के बाद घर जाने की भी जल्दी नही रहती थी। अब कौन बैठा है वहां मेरा इंतजार करते जो थाली में गरमा गरम खाना परोसकर खिलाए। सजल नयनों से नमन भारी कदमों से घर की ओर चल पड़ा।
एक चाभी पापा के पास...