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बदलाव और चुनाव

100 साल पहले जो था वह अब नहीं है, और अब जो है वह 100 साल बाद नहीं होगा। इंसान भी 100 साल पहले जैसे थे, वैसे अब नहीं है और जैसे अब हैं वैसे 100 साल बाद नहीं होंगे। परिवर्तन सदियों से होता आया है और आगे भी होता रहेगा। इसलिए परिवर्तन पर हमारा कोई वश नहीं। लेकिन परिवर्तन के अनुसार जो हम चुनते हैं, जो हम बनते हैं, खुद को हम परिवर्तन के अनुसार कितना बदलते हैं और कितना नहीं बदलते हैं वह हमारे वश में है। वक्त के साथ बदलना हमारी मजबूरी नहीं, हमारी रचनात्मकता का आधार होना चाहिए। अगर हम आज से 5 साल पहले की मानसिकता भी रखते हैं तो भी हम खुद को समय से 5 साल पीछे पाएंगे। क्योंकि परिवर्तन 5 सालों में ही नहीं 5 सेकंड में भी हो सकता है। मैं सोच के सतर पर जो परिवर्तन होते है उसकी बात कर रही हूं। सोच के सतर पर जो भी परिवर्तन होते हैं वह 5 सेकंड में भी हो सकते हैं। उसके अलावा अन्य जो भी परिवर्तन होते है उनकी अपनी अलग अलग समय अवधि होती है। ऐसे में यदि हम परिवर्तन को स्वीकार नहीं करते हैं तो हम पिछड़े रह जाते हैं और यह हमारे दुख का कारण बन जाता है। हमें अगर खुशी का अन्वेषण करना है तो परिवर्तन को स्वीकार करना होगा और सही चुनाव से अपनी खुशियों को चुनना होगा। हमारे चुनाव आज के समय के हिसाब से होना चाहिए तभी हम खुद को परिवर्तन के सांचे में डाल सकते हैं।

समुद्र की तली में एक बहुत ही सूक्ष्मजीव रहता है वह इतना सूक्ष्म है कि उसे नंगी आंखों से नहीं देखा जा सकता उसे माइक्रोस्कोप की सहायता से देख सकते हैं। उसे अमीबा कहते हैं। वह हर पल अपना आकार बदलता रहता है। क्योंकि उस जीव में कोई हड्डी नहीं होती। अगर हड्डी होगी तो वह अपना आकार नही बदल पाएगा। या फिर वह हड्डी उसके आकार में बरकरार नही रहेगी और अमीबा अपनी हड्डी में फसकर अपना आकार परिवर्तन खो देगा या यूं समझ लो कि अपना अस्तित्व ही खो देगा। हम इंसान अपने शरीर का आकार तो कुछ हद तक ही बदल सकते है ज्यादा नहीं क्योंकि वह एक तरह की हड्डी के ढांचे में ढल चुकी हैं। लेकिन हमारी सोच, मानसिकता और विचारों की कोई ऐसी हड्डी नहीं है जिसको हम वक्त परिवर्तन के साथ परिवर्तित ना कर सकें। अपनी मानसिकता के अनुसार हम खुद को जो चाहे बना सकते हैं और जैसे चाहे बदल सकते हैं। स्वयं को परिवर्तन के सांचे में ढालकर क्या बनना चाहिए और किस तरह की मानसिकता होनी चाहिए इसके बारे में बहुत सारे तथ्य हैं जिन्हें हम चुन सकते हैं ज्यादा तो मैं नही जानती लेकिन जितना जानती हूं उतना मैने समझाने का प्रयास किया है अपनी अपनी दूसरी किताब "खुशी का अन्वेषण करें" में। आशा है आप लोग इसे भी अपना प्यार और प्रोत्साहन देंगे।


© Sunita Saini (Rani)
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