घुटन
पौधे सूख रहे हैं, तस्वीरों पर धूल लगी हुई है। घड़ी का समय कुछ 4 घंटे पीछे है। उलझे हुए बिस्तर, बिखरा पड़ा सामान, आधी खुली खिड़कियाँ, हवा से उड़ते अखबार, सब कुछ तहस नहस है जैसे अभी अभी आँधी सी आयी हो। दिमाग की स्थिति भी कुछ ऐसी ही है। मन उलझन में है, जो भी बात अंदर आती हैं उलझ सी जाती हैं। किसी बात का कोई हल नहीं निकल पा रहा। ज़िन्दगी में कुछ हो नही रहा। लगता है सदियों से एक...