हमारा गुरूकुल
हमारा गुरुकुल
"मधुर मनोहर अतीव सुदंर, नगर का गौरव
हमारा गुरूकुल।। बसा है चम्पा नदी के तट पर
नगर का गौरव हमारा गुरूकुल
सुरम्य सुरसरि की धार सुदंर
नहाये जिससे अनेक ऋषिवर।।"
यह कविता गान हमलोग अपने विद्यालय के वार्षिक समारोह मे बहुत ही लयबद्ध और भावुक होकर गाया करते थे। गुरूकुल मे हर साल वार्षिक उत्सव वसंत पंचमी यानि सरस्वती पूजा के दिन मनाया करते थे।
बात सन् 1965 की है। मैं प्राईमरी कक्षा का छात्र था
सरस्वती पूजा के दिन हम सभी छात्र छात्राएं नये कपडे पहन कर सुबह जल्दी आकर उस कमरे की सजावट मे लग जाते जहाँ सरस्वती माता की प्रतिमा रखी रहती थी।
विद्यालय के प्रधानाचार्य सर जगदीश प्रसाद उपाध्याय
के आते ही पूजा शुरू हो जाती थी।
लगभग एक घंटा तक पूजा विधि का कार्य क्रम होता था।हमसब पूजा के दिन तबतक नही खाते जबतक पूजा समाप्त न हो जाय। ठीक पूजा के पश्चात पुष्पांजलि होता था।पंडित सबको हाथ मे पुष्प देकर
पुष्पांजलि का मंत्रोच्चारण करवाते, उसके पश्चात ही प्रसाद खाने को मिलता था।
इस पूजा की तैयारियां महीनों पहले से...
"मधुर मनोहर अतीव सुदंर, नगर का गौरव
हमारा गुरूकुल।। बसा है चम्पा नदी के तट पर
नगर का गौरव हमारा गुरूकुल
सुरम्य सुरसरि की धार सुदंर
नहाये जिससे अनेक ऋषिवर।।"
यह कविता गान हमलोग अपने विद्यालय के वार्षिक समारोह मे बहुत ही लयबद्ध और भावुक होकर गाया करते थे। गुरूकुल मे हर साल वार्षिक उत्सव वसंत पंचमी यानि सरस्वती पूजा के दिन मनाया करते थे।
बात सन् 1965 की है। मैं प्राईमरी कक्षा का छात्र था
सरस्वती पूजा के दिन हम सभी छात्र छात्राएं नये कपडे पहन कर सुबह जल्दी आकर उस कमरे की सजावट मे लग जाते जहाँ सरस्वती माता की प्रतिमा रखी रहती थी।
विद्यालय के प्रधानाचार्य सर जगदीश प्रसाद उपाध्याय
के आते ही पूजा शुरू हो जाती थी।
लगभग एक घंटा तक पूजा विधि का कार्य क्रम होता था।हमसब पूजा के दिन तबतक नही खाते जबतक पूजा समाप्त न हो जाय। ठीक पूजा के पश्चात पुष्पांजलि होता था।पंडित सबको हाथ मे पुष्प देकर
पुष्पांजलि का मंत्रोच्चारण करवाते, उसके पश्चात ही प्रसाद खाने को मिलता था।
इस पूजा की तैयारियां महीनों पहले से...