...

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किसी और की रचना है
खरबूजा
ट्रेन से उतरते ही मैं घर फ़ोन करता हूँ कि कुछ लाना तो नहीं है।
तो आज पत्नी ने कहा एक किलो खरबूजे
लेते आना।
तभी मुझे सड़क किनारे मीठे और ताज़ा खरबूजा बेचते हुए
एक बीमार सी दिखने वाली बुढ़िया दिख गयी।
वैसे तो वह फल हमेशा "चौरासी घंटे वाली मंदिर के पास की दुकान" से
ही लेता था,
पर आज मुझे लगा कि क्यों न
बुढ़िया से ही खरीद लूँ ?
मैंने बुढ़िया से पूछा, "माई, खरबूजा कैसे दिए"
बुढ़िया बोली, बाबूजी 40 रूपये किलो,
मैं बोला, माई 30 रूपये दूंगा।
.
बुढ़िया ने कहा, 35 रूपये दे देना,
दो पैसे मै भी कमा लूंगी।
.
मैं बोला, 30 रूपये लेने हैं तो बोलो,
बुझे चेहरे से बुढ़िया ने,"न" मे गर्दन हिला दी।
मैं बिना कुछ कहे चल पडा
और फल की बड़ी दुकान पर आकर खरबूजा का भाव...