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दो गधे की कहानी
एक बार दो गधे जो कि जुड़वा भाई थे, एक मेले में बिछड़ गए....

एक ने एक धोबी के यहां आसरा पाया और दूसरे ने एक करतब दिखाने वाले नट के यहां....

धोबी गधे से काम तो लेता था लेकिन उसकी देखभाल भी खूब करता था । जब कपड़े धोने नदी तट पर जाता तब गधे को खुल्ला छोड़ देता । नदी किनारे के हरी हरी घास खा और नदी का स्वच्छ जल पी उस गधे की जिंदगी मौज में बीत रही थी.....

दूसरा गधा जो नट के यहां था वह इतना खुशनसीब नहीं था । दिन भर नट अपने करतब के समान उसके पीठ पर लाद बाजार बाजार घूमता, ना उसके खाने का कोई ठिकाना था ना पीने का......
दिन ब दिन वह वजन खोता जा रहा था,हड्डी झलकने लगी थी......

संयोग एक बार वह नट उसी बाजार में अपने गधे के साथ आ पहुंचा जहां धोबी भी अपने गधे के साथ मौजूद था..

गधों की नजर एक दूसरे पर पड़ी, पहचान गए एक दूसरे को , प्रेम से एक दूसरे को देख मिले....साथ ही साथ बुक्का फाड़कर रोए....

भावनाओं का ज्वार जब शांत हुआ, तब व्यवहारिक बातचीत का दौर आरम्भ हुआ....

धोबी के गधे ने नट के गधे के हालत का संज्ञान लेते हुए पूछा:- ये तुमने क्या हाल बना रखा है , लगता है तुम्हारा मालिक तुम्हारा ध्यान नहीं रखता, ऐसा करो तुम भी यहीं आ जाओ....यहां ज़्यादा काम भी नहीं है,सुबह कपडे का गट्ठर लेकर नदी पर जाओ और दिन भर नदी किनारे हरी हरी घास खाओ और शाम में कपडे का गट्ठर लेकर वापस आ जाओ, बस....

यह सुनते ही नट का गधा हंसा और बोला:- तुम मुझे जितना गधा समझते हो उतना मैं हूं नहीं ! मैं यदि उस जालिम नट के पास टिका हूं तो इसके पीछे कारण है.....
कारण ये है कि जब भी खेल दिखाने के दौरान नट की बेटी रस्सी पर चलने को होती है तो नट उससे कहता है:-

संभाल के चलना यदि गिरी तो इस गधे से ब्याह दूंगा

मैं इसीलिए उस नट के पास टिका हूँ कि कभी तो उसकी बेटी गिरेगी....और तुम तो जानते हो भगवान के घर देर है अंधेर नहीं !