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स्नेहिल चुंबन!
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आज भी आंखों के सामने एक अजब वाकया घटा। शिमला के शरारती बंदरों से भगवान बचाए! बंदरों के दो दल आमने सामने एक दूसरे को बंदर-भभकी दे रहे थे। शायद अपनी territory, अपना इलाका सुनिश्चित कर रहे थे।

अचानक एक मोटा गुस्सैल बन्दर बिजली की तेज़ी से आगे बढ़ा और एक बंदरिया माता के हाथ से दुधमुंहा शिशु छीनकर ऊंचे पेड़ पर चढ़ गया। शायद उसका इरादा उस शिशु को ऊंचाई से पटककर मारने का था। बंदरिया माता भी तीव्र गति से खंखारती हुई उसके पीछे दौड़ ली।

अचानक उस मोटे बंदर ने शिशु बंदर को दूर हवा में उछाल दिया।मेरा हृदय धक्क रह गया! मैं सोचने लगा कि यह अबोध तो बिना कारण मारा गया!

मगर बंदरिया के अगले कदम ने मेरे साथ चल रहे अन्य राहगीरों को ताली बजाने के लिए मजबूर कर दिया। बंदरिया ने बडे ही फिल्मी अंदाज में हवा में लंबी छलांग लगाई और शिशु बंदर को ज़मीन पर गिरने से पहले ही लपक लिया। गुलाटी खाते हुए उसने शिशु को अपने सीने चिपटा लिया और फुर्ती से एक वृक्ष पर चढ़ गई।

नीचे दोनों बंदर दल लड़ने में व्यस्त थे और मैं बंदरिया माता और शिशु को निहार रहा था। मां ने अपने दोनों हाथों से शिशु के शरीर का पूरा निरीक्षण किया!

सब ठीक है सुनिश्चित करने के बाद बंदरिया माता ने शिशु को दोनों हाथों से उठाया और बेतहाशा उसके चेहरे को चूमने लगी और फिर उसे अपनी छाती से भींच लिया। उसकी यह ममता भरी हरकत सच में तरह से किसी मानव माता की तरह ही थी।
मैं खुश था कि वानर शिशु सुरक्षित है।

मन में यूं ही एक यायावर विचार आया— जब मन की उमड़ती स्नेह भावनाओं को व्यक्त करने के लिए शब्द नहीं मिलते तो जीव चुंबन का सहारा लेते हैं! शायद प्रेम की भावना का अतिरेक रूप ही चुंबन है। मुझे लगता है सुधि पाठक सहमत होंगे!

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—Vijay Kumar
© Truly Chambyal