...

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चराग
एक चराग शाम होते होते बुज गया,,
जब वो आया तिरंगे लिपट कर गाँव,,
गाँव अब पहले से ज्यादा रौशन हो गया,,

आखिर कोन था कहां से था ?
किसी को उसके के बारे मे
आज से पहले कुछ मालूम ना था ,,
गिरा कुछ यूं सरहद पे लहू का कत्रा
आज सहर भर मे उसका नाम हो गया।।

रखा जब घर की दहलीज पर कदम "
वहां का मंजर कुछ ओर था ।
कुछ तकती निगाहे थी कुछ थकी निगाहे थी ""...