...

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चराग
एक चराग शाम होते होते बुज गया,,
जब वो आया तिरंगे लिपट कर गाँव,,
गाँव अब पहले से ज्यादा रौशन हो गया,,

आखिर कोन था कहां से था ?
किसी को उसके के बारे मे
आज से पहले कुछ मालूम ना था ,,
गिरा कुछ यूं सरहद पे लहू का कत्रा
आज सहर भर मे उसका नाम हो गया।।

रखा जब घर की दहलीज पर कदम "
वहां का मंजर कुछ ओर था ।
कुछ तकती निगाहे थी कुछ थकी निगाहे थी ""
किसी निगाह में आस थी किसी की टूटती उखड़ी हुई सांस थी"

बैठा था बूढ़ा पिता बैसाखी के सहारे एक कोने मे
मां देख रही थी गली मे दुर तक अपने राज दुलारे को
पत्नी उसकी बदहवास थी कभी आती वह होश में कभी रुक जाती हिचकी मे उसकी सांस थी।

घर में उसके एक नन्ही गुड़िया थी
जैसे कोई चहकती चिड़िया थी
उसको भी भनक इस बात की लग गई,
आज उसके पिता आने वाले हैं
आज वो शरारत कुछ नहीं कर रही थी
खुशी खुशी से उछल उछल कर
सबसे बस यही कह रही थी
आज मेरे पिता आने वाले है
दे आई अपने नन्हे सारे दोस्तों को निमंत्रण
की मिठाई ढेर सारी लाने वाले हैं
आज मेरे पिता आने वाले है ।
वह क्या जाने जन्म-मृत्यु के बंधन को
मां की कोख में थी
तब से चला गया था वह विर सरहद को
उसने बरसों से नहीं देखा अपने पिता को,,

पकड़ के अपने दोनों बाजू
भीड़ में एक इंसान जो दूर खड़ा था
कोई और नहीं उसका भाई बड़ा था
सारी जिम्मेदारी का बोझ उस पर जो आ पड़ा था,,
उसको लगा कि आज एक बाजू कट गया
विधि का लेख ही कुछ ऐसा था बचपन मे रोज खेल खिलाया था मेने अपने जिस कांधे पर
कैसे उठा लूंगा अब मैं उसको अपने कांधे पर।।
सोज़ की कलम से ✍✍✍
अभी ओर लिखना जारी है
© jitensoz