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" अदृश्य शक्तियां "
...वर्ष 1999 का मई-जून महीना।कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के डिस्टेंस एजुकेशन के तहत स्नातकोत्तर (हिन्दी) के प्रथम वर्ष की परीक्षाएँ चल रहीं थीं।मेरा परीक्षा केंद्र करनाल का कोई +2 स्कूल था,जिसका नाम याद नहीं आ रहा।सुबह दिल्ली के आईएसबीटी से करनाल की बस पकड़ता,और 9:30 तक परीक्षा केंद्र पर पहुँच जाता!फिर बस से ही वापस दिल्ली लौटता।हालांकि बस से आने-जाने में पैसे बहुत खर्च होते थे...और हम बेरोजगार छात्रों को वैसे भी पैसों की दिक्कत तो लगी ही रहती थी।
...तीन पेपर की परीक्षा दे लेने के बाद अंतिम पेपर के दिन मन में ख़्याल आया कि नई दिल्ली स्टेशन से करनाल जाने वाली पैसेंजर ट्रेन से आने-जाने में पैसे और समय की भी बचत होगी!यही सोचकर सुबह नियत समय पर नई दिल्ली स्टेशन पहुँचा।पता चला कि ट्रेन लेट है।अब समझ में नहीं आ रहा था कि क्या किया जाए?
...इस क्रम में वहीं 07:00 बज गये।आनन-फानन में मैंने फिर आईएसबीटी जाकर बस से करनाल जाने का विचार किया।तेज़ी से अजमेरी गेट की ओर आकर आईएसबीटी जाने वाली बस में बैठा और 07:30 में वहाँ पहुँचा।मेरे पहुँचते ही एक बस खुल गयी।चंडीगढ़ वाली दूसरी बस 08:00 बजे खुलने वाली थी।परीक्षा 10:00 बजे शुरु होती थी,10:15 तक देर से आने वालों के लिए समय निर्धारित था।उसके बाद मेनगेट बंद कर दिया जाता था।
...बस नियत समय पर 08:00 बजे खुली तो ज़रूर लेकिन 09:50 के आसपास करनाल से 6-7 किलोमीटर पहले एक ढाबे पर रुक गयी,जहाँ सभी लोग नाश्ता-खाना के नाम पर बस से उतरने लगे।मैंने बस के कंडक्टर से आग्रह भी किया कि मुझे करनाल तक तो छोड़ दे,क्योंकि मेरी परीक्षा है, लेकिन उसने मेरी एक नहीं सुनी।इस क्रम में10:05 हो गये।
...मरता क्या न करता??मैंने बस वहीं छोड़ दी,और हाई वे पर आकर करनाल की ओर जा रही सवारियों से लिफ्ट माँगा,पर कोई तैयार नहीं हुआ।तब तक 10:15 हो चुके थे।मैं पूरी तरह से टूट चुका था कि अब तो किसी भी हाल में आज का पेपर नहीं दे पाऊँगा।मुझे कुछ सूझ नहीं रहा था।सब ओर से निराश होकर मैं वहीं खड़े-खड़े खूब रोया,लेकिन गुज़र रही सवारियों से लिफ्ट माँगना जारी रखा।अचानक मेरे पास यात्रियों से खचाखच भरी हुई एक ऑटो रुकी।मैंने उसके ड्राइवर से रोते-रोते कहा-"मेरी परीक्षा थी दस बजे से।बस वाले ने धोखा दे दिया।10:15 तक पहुँचना था।बड़ी मेहरबानी होती जो मुझे परीक्षा केंद्र तक पहुँचा देते!"ड्राइवर ने मुझे शांत कराते हुए कहा-"मेरे रहते आपकी परीक्षा नहीं छूट सकती।आप निश्चिंत रहो।मैं आपकी परीक्षा दिलवा कर रहूँगा।"
...ऑटो के यात्रियों को अलग-अलग स्थानों पर उतरना था,लेकिन ड्राइवर ने सबसे हाथ जोड़ते हुए कहा-" भगवान के लिए आपलोग चुपचाप बैठे रहो!इस भाई के कैरियर का सवाल है।मैं पहले इसे पहुँचाऊँगा, फिर आप सबको।"यात्रियों में से किसी ने विरोध नहीं किया।
...ड्राइवर ने 10:40 में स्कूल के मेनगेट पर ऑटो को रोका।जब गेटकीपर ने गेट नहीं खोला तो वह उससे लड़ लिया।इस लड़ाई के क्रम में उस स्कूल के प्राचार्य मेनगेट पर पहुँचे।उन्होंने भी पहले मुझे अंदर लेने से मना कर दिया,लेकिन ऑटो ड्राइवर और अन्य यात्रियों के विनम्र आग्रह से उन्होंने मुझे गेट के अंदर आने की अनुमति दी।मैंने ऑटो ड्राइवर को उसका किराया 20 रुपये बढ़ाये तो उसने लेने से साफ इनकार करते हुए कहा-"भाई,अच्छे से परीक्षा देना मेरा नाम महेंद्र है।सब्जी मंडी में अपनी ऑटो लगाता हूँ।किसी से पूछ लेना,बता देगा।"महेंद्र ऑटोवाले से विदा लेकर मैं स्कूल परिसर में आ गया और उस दिन की परीक्षा दी।
...दिल्ली लौटने के लिए मेरे पास मात्र 35 रुपये बचे थे।परीक्षा केंद्र से पैदल स्टेशन आया।10 रुपये में गन्ने का रस पीया।संभवतः 20 रुपये का टिकट लिया,और आजादपुर मंडी स्टेशन पर उतर कर रिंग रोड पर जानबूझकर ब्लूलाइन बस में पीछे से 'स्टाफ डीयु' बोलकर चढ़ा।मेरे पास अब 05 रुपये ही बचे थे।ब्लूलाईन बस से राजा गार्डेन उतरा,और बचे हुए पैसे से भूजा खाकर जनकपुरी,सी-1 तक पैदल चलने का मन बनाया।लगभग दो घंटे पैदल चलने के बाद अपने कमरे पर पहुँचा।
...इस पूरी यात्रा में ऑटो ड्राइवर महेंद्र को नहीं भूल पाया।मैं इसलिए उसे ढूँढ नहीं पाया क्योंकि मेरे पास उसे देने लायक पैसे नहीं थे।
...'जाह्नवी' पत्रिका में बतौर संपादन सहयोगी काम करते हुए मैंने ऑटो ड्राइवर महेंद्र जी पर एक आलेख लिखा जो पत्रिका में प्रकाशित भी हुई।करनाल शहर की याद जब भी आती है तो स्मृति पटल पर सबसे प्रमुखता से उभर कर आ जाते हैं महेंद्र जी।उनका 20 रुपया अभी भी मेरे पास कर्ज़ है।
...आज भी हमारे आसपास महेंद्र जी जैसे अनेक व्यक्ति हैं जो ईश्वर निर्देशित हैं,जो हमारा साथ ऐसे अवसरों पर देते हैं जब हम पूरी तरह से निराश होकर खुद को ईश्वर को समर्पित कर देते हैं...और तब महेंद्र जी जैसे व्यक्तित्व अचानक से अदृश्य शक्ति बनकर हमारे बिगड़े हुए कार्य को सँवार जाते हैं!इसलिए मेरा अपना मानना है कि हम जीवन के हर क्षेत्र में ईमानदार बने रहें,तो ईश्वर हमें विपरीत परिस्थितियों में संभालने के हमेशा तैयार रहते हैं।कोई हमारे कर्मों को देखे-ना-देखे,पर अदृश्य निराकार ईश्वर सब देख रहा है!

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