khuda Hafaj....
मुझे वो धुंध में लिपटी हुई
मासूम सदियाँ याद आती हैं
कि जब तुम हर जगह थे
हर तरफ़ थे
हर कहीं थे तुम
रिहाइश थी तुम्हारी आस्मानों में
ज़मीं के भी मकीं थे तुम
तुम्हीं थे चाँद और सूरज के मुल्कों में
तुम्हीं तारों की नगरी में
हवाओं में
फ़िज़ाओं में
दिशाओं में
सुलगती धूप में तुम थे
तुम्हीं थे ठंडी छाँवों में
तुम्हीं खेतों में उगते थे
तुम्हीं पेड़ों पे फलते थे
तुम्हीं बारिश की बूँदों में
तुम्हीं सारी घटाओं में
...
मासूम सदियाँ याद आती हैं
कि जब तुम हर जगह थे
हर तरफ़ थे
हर कहीं थे तुम
रिहाइश थी तुम्हारी आस्मानों में
ज़मीं के भी मकीं थे तुम
तुम्हीं थे चाँद और सूरज के मुल्कों में
तुम्हीं तारों की नगरी में
हवाओं में
फ़िज़ाओं में
दिशाओं में
सुलगती धूप में तुम थे
तुम्हीं थे ठंडी छाँवों में
तुम्हीं खेतों में उगते थे
तुम्हीं पेड़ों पे फलते थे
तुम्हीं बारिश की बूँदों में
तुम्हीं सारी घटाओं में
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