#कहानी मेरी जिंदगी
वो बचपन सबको जब लगता था अच्छा
मेरा जीवन का सफर हुआ वहीं से खोटा।
वो बचपन के दिन बहुत भली थी यार न मुझे थी किसी चीज कि कोई पहचान,न गैस हुआ करता न बिजली,तब मैं अपने घर के लिए लकङिया बिनकर लाती थी।दादी उसे भी छिपा लेती थी लेकिन मेरी मां कभी भूखा नहीं सुलाती थी,दो रोटियां दादी के चूल्हे से लाकर तकिए के नीचे छिपाकर रख देती थी और जब सब सो जाते थे तो वो सूखी रोटियां खाकर हम सो जाते थे।अगर वही रोटियां गलती से दादी,चाचा देख लेते तो अगले दिन वो भी नशिब नहीं। सोने को विस्तर नहीं था नाम कि एक चारपाई जो पूरी टुटी...
मेरा जीवन का सफर हुआ वहीं से खोटा।
वो बचपन के दिन बहुत भली थी यार न मुझे थी किसी चीज कि कोई पहचान,न गैस हुआ करता न बिजली,तब मैं अपने घर के लिए लकङिया बिनकर लाती थी।दादी उसे भी छिपा लेती थी लेकिन मेरी मां कभी भूखा नहीं सुलाती थी,दो रोटियां दादी के चूल्हे से लाकर तकिए के नीचे छिपाकर रख देती थी और जब सब सो जाते थे तो वो सूखी रोटियां खाकर हम सो जाते थे।अगर वही रोटियां गलती से दादी,चाचा देख लेते तो अगले दिन वो भी नशिब नहीं। सोने को विस्तर नहीं था नाम कि एक चारपाई जो पूरी टुटी...