...

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वो भी क्या दिन थे।
वो भी क्या दिन थे।

गुजर जाता था दिन पर मेरी रात न होती
दोस्तों की टोली में खामोशी की रात न होती
खेल का पिटारा कभी कम ना होता
और सितारों में भी अपने मिलते थे
कभी चंदा मामा होजा ते
तो कभी सूरज दादा
ख्वाबो की गाड़ी का तो स्टेशन ही न था
और मेरे सवालों का जवाब किसी के पास न था
सुबह पापा की डाट से होती
तो रात मां कि लोरी में गुजर ती

डर तो सबसे बड़ा स्कूल के मास्टर से ही था
और साया दादी की उन कहानियों में

जो आज भी याद आती है।

दिन गुज़रा, रात बीती।
ज़िंदगी की नई आस सीखी,
और यादों की सौगात लेकर ज़िंदगी की वो सारी राह बीती।
© quotes_lover1023