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संतोष का फल
1 साल पहले की बात है तीन भी कार्य थे पहले भिखारी लालची था दूसरा बुरा था जैसे कोई को तकलीफ देता था किसी को भी धक्का दे देता था तीसरा भिखारी बहुत ही संतोषी था उसे तो 2 दिन खाना ना मिले तो वह रह जाता था उस शहर में एक धनी सेठ था वह हर रोज की खामियों को रोटी देता था बड़े-बड़े कार्टून से 20 कार्टून रोटी आता था 1 दिन धनी सेठ ने तीनों भिखारियों को देखा उन तीनों के स्वभाव को देखा और एक दिन एक रोटी बहुत छोटा बनवाया जब सब खाली रोटी ले लिए तो सबसे छोटा रोटी से भिखारी को मिला वह रोटी लेकर ही संतोष कर लिया जब वह खाने गया तो उस रोटी में ₹100 था उसने सोचा कि सेठ का पैसा गलती से रोटी में आ गया उसने झट से सेठ के घर गया और सेठ को पैसे लौटा रहा था तभी सेठ ने मना कर दिया और बोला किया मैं जानकारी में डाला था तुम्हारे परीक्षा ले रहा था तुम परीक्षण में पास हो गए और तुम्हारी मंदारिया से मैं बहुत प्रसन्न हूं आज से तुम मेरे यहां काम करोगे तुम भीख नहीं मांगोगे