Sarthak calling :chapter 2
अध्याय 2 - वेदना
रेप की बात सुनकर तो किसी के भी रोंगटे खड़े हो सकते है ,पर
कल्पना के चेहरे पर कोई भाव नही थे ।
"मेरे मुंह से रेप शब्द सुनकर आपको लग रहा होगा कि मैं कितना घटिया इंसान हूँ , पर यकीन मानिए मैंने यहीं देखा ।"मैं मानो अपनी सफाई दे रहा था ।
कल्पना उठी । वह धीरे धीरे चलते हुए सोफे से किनारे मेज तक गयी । बगल में एक सुराही थी । उसने दो गिलास लिए और दोनों में पानी भरा। फिर वो मेरी तरफ मुड़ी और मेरे पास आकर मुझे एक गिलास दिया और सिर ऐसे हिलाया की मुझे मानो ऐसे लगा कि वो मुझे पानी पीने को कह रही हो । मैंने गिलास लिया और गटागट पी गया । मेरी इस हरकत को देखकर वह मुस्कुराईं फिर वो जल्दी से अपने सोफे पर जाकर बैठ गयी ।
"एक बात बताइये आप वहीं सिद्धान्त रावत है ना , जिन्होंने दो या तीन साल ह्यूमन ट्रैफिकिंग के गिरोह को पकड़ा था ?" कल्पना ने कहा ।
"जी हां , वहीं हूँ" मैंने कहा ।
"इसके अलावा भी आपने कई गलत कामो का पर्दाफाश किया है ना?"कल्पना ने पूछा ।
"जी , दरअसल मैंने पत्रकारिता की ही इसीलिए थी । कैरियर की शुरुआत में मैंने कई दिलचस्प काम किये। पर..."मैं बोलते बोलते रूक गया ।
"पर क्या ?" कल्पना ने पूछा ।
"ये व्यवस्था ही भ्रष्ट है,हाँ मैंने जोश में आकर कुछ समाज सुधार करने की कोशिश की ,लेकिन हर बार उल्टा मैं ही फंस जाता था , किसी भी अखबार या न्यूज़ चैनल से मेरी नही पटी । आखिर में मुझे पेट चलाने के लिए कुछ तो करना था क्योंकि मैं किसी टाटा, बिरला या अम्बानी की संतान तो हुँ नही , तो मैं नार्मल...
रेप की बात सुनकर तो किसी के भी रोंगटे खड़े हो सकते है ,पर
कल्पना के चेहरे पर कोई भाव नही थे ।
"मेरे मुंह से रेप शब्द सुनकर आपको लग रहा होगा कि मैं कितना घटिया इंसान हूँ , पर यकीन मानिए मैंने यहीं देखा ।"मैं मानो अपनी सफाई दे रहा था ।
कल्पना उठी । वह धीरे धीरे चलते हुए सोफे से किनारे मेज तक गयी । बगल में एक सुराही थी । उसने दो गिलास लिए और दोनों में पानी भरा। फिर वो मेरी तरफ मुड़ी और मेरे पास आकर मुझे एक गिलास दिया और सिर ऐसे हिलाया की मुझे मानो ऐसे लगा कि वो मुझे पानी पीने को कह रही हो । मैंने गिलास लिया और गटागट पी गया । मेरी इस हरकत को देखकर वह मुस्कुराईं फिर वो जल्दी से अपने सोफे पर जाकर बैठ गयी ।
"एक बात बताइये आप वहीं सिद्धान्त रावत है ना , जिन्होंने दो या तीन साल ह्यूमन ट्रैफिकिंग के गिरोह को पकड़ा था ?" कल्पना ने कहा ।
"जी हां , वहीं हूँ" मैंने कहा ।
"इसके अलावा भी आपने कई गलत कामो का पर्दाफाश किया है ना?"कल्पना ने पूछा ।
"जी , दरअसल मैंने पत्रकारिता की ही इसीलिए थी । कैरियर की शुरुआत में मैंने कई दिलचस्प काम किये। पर..."मैं बोलते बोलते रूक गया ।
"पर क्या ?" कल्पना ने पूछा ।
"ये व्यवस्था ही भ्रष्ट है,हाँ मैंने जोश में आकर कुछ समाज सुधार करने की कोशिश की ,लेकिन हर बार उल्टा मैं ही फंस जाता था , किसी भी अखबार या न्यूज़ चैनल से मेरी नही पटी । आखिर में मुझे पेट चलाने के लिए कुछ तो करना था क्योंकि मैं किसी टाटा, बिरला या अम्बानी की संतान तो हुँ नही , तो मैं नार्मल...