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ऊपरवाले की पीड़ा
आज जब मैं अकेले ख़ुद से बातें कर रही थी (अरे बाबा मैं कोई पागल नहीं हूं,मेरा मतलब है जब मैं ख़ुद के साथ समय बिता रही थी), तो अचानक से मेरे मन में एक सवाल आया। कैसा सवाल???
और कुछ नहीं,बस मेरा सवाल ऊपरवाले से था,कि आखिर वो सब को सब कुछ क्यों नहीं देता? हमने कयी बार अपनी आंखों से इसके उदाहरण देखे हैं जब ऊपरवाले ने हम इंसानों के साथ घोर नाइंसाफी की। जैसे की :
1) जिनके पास पैसा होता है, उनके पास चैन, सुकून नहीं
2) जिनके पास पैसा नहीं होता है, उनके पास ग़रीबी, भुखमरी
3) जो सुंदर, रूपवान होते हैं वो सेहत से फ़कीर होते हैं और
4) जो सेहत के बादशाह होते हैं वो सूरत से फ़कीर
कहने का मतलब ये है कि हर इंसान यहां अपना दुखड़ा रोता है। सब कुछ होते हुए भी, खालीपन महसूस कर भगवान को कोसता है,या कमियां निकालता है। किसी को पति में खोट दिखता है तो किसी को पत्नी में। कोई स्त्री सब कुछ होते हुए भी औलाद से वंचित रह जाती है तो पुरूष नशे में ख़ुद को ढकेल देता है। आपको औसतन आपके आस-पास ही ऐसे परिवार मिल जाएंगे जो देखने पर तो एकदम आदर्श परिवार नज़र आता है पर असलियत कुछ और होती है। आज कल कोई किसी से संतुष्ट नहीं, सबको सब में खोट नज़र आती है। कुछ मर्दों को औरतों का बाहर घूमना फिरना या काम पर जाना पसंद नहीं तो कुछ औरतें घरेलू हिंसा का भय दिखा कर,घर पर अपने पति के साथ जानवर से भी बुरा सुलूक करती है। मतलब भगवान भी ऊपर बैठे बैठे सोच रहे होंगे कि ये सब तो अपनी शिकायत ले कर हमारे दरबार में आते हैं,पर हम इनके इतने रंग देख दंग रह गए हैं,हम किसके दरबार जाएं??
ज़्यादा कुछ नहीं,बस सीधी सी बात है, जितना है,उसी में संतुष्ट रहना गर मनुष्य सीख जाए और परिस्थितियों में ख़ुद को ढाल कर आगे बढ़े,तो ऊपरवाले का काम भी आसान और अपना भी। क्यों, है ना बिल्कुल सही।।।
© Aphrodite