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"मुक़म्मल इश्क़" Part-1
सुनो,
सिमरन ने बहुत धीमे से राज को कहा, राज सुन नहीं पाया। शायद उसका ध्यान बहुत दूर से आती ट्रेन की सिटी को सुनने में था।
खामोश रात अपने अंधेरे के आंचल को फैला रही थी। राज और सिमरन रेलवे स्टेशन पर ट्रेन का इंतजार कर रहे थे। स्टेशन पर एक-दो व्यक्ति ही घूम रहे थे।
सिमरन थोड़ी डरी हुई और सहमी हुई थी। ऐसा होना जायज ही था, पहली बार माँ-बाप और घर से दूर जो जा रही थी।
राज ने घीरे से सिमरन का हाथ पकड़ा, और उसकी तरफ प्यार से देखा, मानो वो सिमरन को कहना चाहता हो कि "सब तरह के डर मन से निकाल दो, मैं हूँ ना साथ"।
सिमरन ने राज की आँखों में देखा, और देख कर प्यारी सी मुस्कराहट, उसके चेहरे को अंधेरी रात में चमकाने लगी।
अचानक, लाऊड स्पीकर की आवाज ने सन्नाटे को चीर दिया।
उस आवाज को सुनकर राज और सिमरन दोनों के दिल जोर-जोर से धड़कने लगे, मानो धड़कनों की आवाज लाउड स्पीकर की आवाज से कोई मुकाबला करना चाहती हो....

To Be Continued...

© अजय खेर

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