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संस्कार के लिए संयुक्त परिवार का होना जरूरी
संस्कार के लिए संयुक्त परिवार का होना जरूरी!
संयुक्त परिवार पीपल की वह ठंडी छांव है जिसकी छत्रछाया में बच्चे बड़े ही आराम से दैनिक दिनचर्या सीख जाते हैं। उन्हें छोटी-छोटी चीजों के लिए बार-बार बोलना टोकना नहीं पड़ता है ।ना ही उन्हें छोटे बड़ों के साथ व्यवहार करना सीखना पड़ता है। बल्कि वह तो स्वयं ही अपने से बड़ों के व्यवहार को देखकर सीख जाते हैं।
कि किसके साथ कैसा व्यवहार करना है।
एक दूसरे के साथ हंसना बोलना बातें करना उनके सुख दुख में साथ देना जरूरत में मदद करना और काम में सहयोग करना यूं ही खाते खेलते हुए सीख जाते हैं।
आज के इस बदलते दौड़ में बच्चों में शिष्टाचार, संस्कार और भाव का अभाव देखने को मिलता है।
जिसका मूल कारण उसकी परवरिश को जाता है ।उनकी परवरिश कुछ ऐसे माहौल में होती है जहां ना तो उन्हें दादा दादी नाना नानी बुआ और चाचा चाचा प्यार दुलार मिलता है और ना ही अपने भाई बहनों का संग साथ ही नशीब होता है। ऐसे में बच्चों में भाव का अभाव तो सर्वोच्च चित्त है। माना कि काम जरूरी है शिक्षा जरूरी है पर क्या बच्चों की अच्छी परवरिश जरूरी नहीं...??
बड़ी-बड़ी कंपनियों में बड़े-बड़े पोस्टों पर कार्यरत कर्मचारी बिहेवियर का कोर्स एक मोटी रकम अदा करके सीखने और सीखाते हैं। जो संयुक्त परिवार के बच्चे खेल-खेल में सीख जाते हैं उन्हें इस कोर्स को करने की कोई जरूरत कोई आवश्यकता नहीं होती है।
पर क्यों...? आखिर क्या है संयुक्त परिवार में ऐसा जिसकी वजह से वहां के बच्चे संस्कारों से सुसज्जित और समझदार होते हैं।जीवन की हर चुनौती हंस कर स्वीकार करते हैं।
संयुक्त परिवार में तीन पीढियां एक साथ रहते हैं।जिनका आपस मे एक दूसरे के साथ परस्पर संबंध होता है।
एक दूसरे की बातों को समझना एक दूसरे की जरूरत को समझना एक दूसरे कि भावनाओं का कद्र करना
अपनी चीजें बांटना, एक दूसरे की सहायता करना
हमें जीने का गुर सीखा देते हैं।थोड़े में ज्यादा खुशियां और जीवन का अनुभव प्रदान करते हैं।
संयुक्त परिवार जरुरत,बांटना,मांगना, सहयोग करना और सद्पयोग करना सिखाता है।जिससे बच्चों में विनम्रता,सहनशीलता और परोपकार की भावना पनपती हैं। जिससे बच्चा संस्कारी और गुनी होते हैं।