...

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फूल ने कहा माली से..
नित्य की तरह माली आज भी पुष्पों को पानी देने के लिये बाग में आया था..
आस पास पड़ी गंदगी साफ करके फूलों की एक एक पंखुड़ी को कोमलता से साफ करता जा रहा था...
तभी उसने देखा एक पुष्प में से बूंदे गिर रही हैं.. ये देखकर माली की आँख भर आयी मानो पुष्प उससे कह रहा हो...

ऐ मेरे भाग्यविधाता तुम्हें क्या कहूँ मैं.. कितने जतन से हमें पालपोस कर बड़ा करते हो..
और हमारे खिलते ही एक दिन पराये हाथों में सौंप देते हो..
क्यूँ कलेजा फट नहीं जाता तुम्हारा..
कभी हमसे भी पूछ लिया करो.. किसी को सौंपने से पहले... कभी सोचा है जिसके हाथों में हमें दे देते हो क्या वह तुम्हारी तरह हमारा ख्याल रखता होगा... क्या तुम्हारी तरह हमें प्यार करता होगा... या फिर खिलकर मसल जाना ही हमारे भाग्य में लिखा है..?
माली ने ऐ मेरे पुष्प सुनो, मैं तुम्हें एक सत्य बताता हूं, तुम मेरी बगिया में रहकर भी एक दिन मुरझा ही जाओगे..तुम्हारी कोमल पंखुड़ियां झर जानी हैं, मुझे ही एक दिन तुम्हें डाल से तोड़कर कहीं फेंकना होगा क्योंकि तब तुम अपने सौंदर्य और अपने अस्तित्व को खो चुके होगे और तुम्हें टूटते मुरझाते मैं देख नहीं सकता..ये सोचकर तुम्हारे सौंदर्य और सुगंध को परोपकार के निमित्त अर्पण कर जाता हूं,अगर तुम्हें यूँ ही मिट जाना है तो क्यूँ ना किसी के सुख दुख में तुम्हें कुर्बान कर दूँ...और तुम्हें सदा सदा के लिये अमर कर दूँ...
इस संवाद में दोनों ओर से समर्पण की पराकाष्ठा दृश्यमान होती है और दोनों की आँखों में नमी.. जो कि सम्भवतः एक दूसरे की भावनाओं के सम्मान में थीं..
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