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एक मुलाकात (पार्ट 4)
जब एक हफ़्ते तक सुरुचि लाइब्रेरी में नहीं आयी तो विपिन से रहा नहीं गया। वो शाम को ही प्रधानाचार्य से इस बारे में बात कर लेगा, उसने अपना मन बनाया। शाम हुई तो विपिन ऑफिस में गया, थोड़ी सी पढ़ाई और बच्चों के विषय में बात करके वो सीधे मुद्दे पर आ गया। उसने सारी बात बताई पर प्रिंसिपल सर ने कुछ नहीं कहा बस उसे सुनते गए चुप चप फ़िर ख़ामोशी में बैठ अपनी बेटी (सुरुचि) की तस्वीर को निहारने लगे।

विपिन शांति से बैठे उनके कुछ बोलने का इंतज़ार कर रहा था कि तभी वो बोल - "उसे पढ़ने का बहुत शौक था, वो अपना सारा दिन उस लाइब्रेरी में ही बिताया करती थी। सारी किताबें उसको जैसे रटी हुई थी, कौन सी किताब कहाँ है, किस किताब के किस पन्ने पर क्या लिखा था, उसे सब याद रहता था। वो हमेशा कहा करती थी कि इस लाइब्रेरी को और इस स्कूल को बंद नहीं करना, जब मैं मर जाऊंँगी तो यहांँ पढ़ने आया करूंँगी।" कहते कहते उनकी आंँखें भर आयी।
विपिन चुप चाप उनको सुनता रहा, वे अपनी पलकों को पोंछते हुए आगे बोले, "दो साल पहले वो अपने कॉलेज की तरफ़ से बाहर घूमने गई थी, रोज़ फोन करके वो हमें बताया करती कि उसका दिन कैसा गुज़रा, उसने क्या क्या किया। फिर एक दिन उसका फ़ोन नहीं आया, हमने बहुत मिलाया पर फ़ोन हर बार बन्द ही आया। 2 दिन और गुज़र गए पर उसकी कोई खबर नहीं आई, ना ही उसके साथ गए किसी भी स्टूडेंट और टीचर की।"
ख़ुदको संभालते हुए वो आगे बोले -" हमने उनके लापता होने की रिपोर्ट लिखवाई, उसके एक हफ़्ते बाद पता चला कि...."
"कि क्या?" विपिन ज़रा ज़रा घबराते हुए बोला।
कुछ बोलने से पहले ही उनकी आंँखे भर आयी। "जैसे की उसने कहा था कि वो लाइब्रेरी आया करेगी, वो अक्सर आती है, कोई उसे देखकर डर ना जाए बस इसलिए लाइब्रेरी अब 7 बजे बन्द हो जाती है।" वे विपिन को सहानुभती भरी नज़रों से देखते हुए बोले।

ये सब सुनकर उसके पैरों तले से ज़मीन खिसक गई थी, वो गहरी सांस लेते हुए तुरंत वहाँ से अपने कमरे मेें चला गया।वो आत्माओं को मानता नहीं था,पर सुरुचि का अचानक आना जाना, बन्द कमरे में अकेले होना, उसे यकीन पर विवश भी कर रहा था।
© pooja gaur