...

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पैग़ाम-ए-मोहब्बत
इश्क़ मैंने कर लिया उसकी रवायतें पूरी करूँ कैसे
हो गयी है उससे मोहब्बत, उसे ख़बर करूँ कैसे
पैग़ाम-ए-मोहब्बत उसके दिल तक पहुंचाऊँ कैसे
मुझे कोई राह दिखा मेरे ख़ुदा, इज़हार करूँ कैसे

मिलने की कोई सूरत हरगिज़ नज़र नहीं आती
रोज़ इसी राह से गुज़रती थी, मग़र अब नहीं आती
उसकी गली का पता मुझे मालूम नहीं, चल पड़ा हूँ
अब तो सहेली भी कोई, पैग़ाम उसका नहीं लाती

मुझे इश्क़ हुआ है, कोई इत्तला तो कर दो मेरे यार को
समझ मुझे कहीं चूम ना ले मेरे मोहल्ले की दीवार को
झोंके संग हवा के कभी तो उसको भी लगे कि मैं पास हूँ
समझो हुई गिरफ़्तार मेरे इश्क़ में, मैं उसका तलबग़ार हूँ

कोई पैग़ाम इश्क़ का, उसकी मोहब्बत का भी लेकर आये
इसी इंतज़ार में, मेरी सारी ज़िंदगी कहीं गुज़र ना जाये
क़यामत तक इंतज़ार ना करवाना मुझसे, कर ना सकूँगा
मुझे बेपनाह इश्क़ है तुमसे, कभी तुम्हें भुला ना सकूँगा

जो निकली रूह जिस्म से मेरी, न उसे ख़बर हो पायेगी
करने आख़िरी अलविदा, मुझसे मिलने वो आयेगी
बाद मेरे सुन पैग़ाम ग़र वो आयी, तो भी क्या फ़ायदा
देख उसे छू भी ना सकूँगा, एक कसक ही रह जायेगी।

बात बने, हम तुम हाथों में हाथ लिए वादियों में घूमें
खुशबू हमारे इश्क़ की, बन पवन कली-कली चूमें,
दुनिया को मिल जायेगा पैग़ाम, हमारे इश्क़ का,
रस्म-ए-मोहब्बत रह जायेगी, संग बेबसी रह जायेगी

क्या है तुम्हारे दिल में, मुझे भी कभी बतलाओ
क्या धड़कन पर नाम है मेरा, मुझे भी दिखलाओ
आओ मेरी बाँहों में, छू कर तुम्हें यकीन कर लूँ
तुम हो मेरी पनाहों में, ख़ुद पर थोड़ा गुमां कर लूँ।

© सुधा सिंह 💐💐