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सौन्दर्य-पान
प्रश्न :
क्या आप कोई सुन्दर चीज़ दिखा सकते हैं?
उत्तर:
✍🏼 माफ़ कीजियेगा, हम चाहकर भी ऐसा नहीं कर सकते।

क्योंकि- सौंदर्य बाहरी संसार में नहीं, हमारी दृष्टि में होता है।

कहा भी है : जैसी दृष्टि वैसी सृष्टि !

लिहाजा जो चीज़ हमें सुन्दर लगे, वह आपको भी लुभाए, यह आवश्यक नहीं।

फिर हम किसी सुन्दर चीज़/दृश्य का नाम या चित्र पेश करके, क्यों अपनी फजीहत करवाएं?

या आपसे झूठी प्रशंसा पाकर, क्यों अपने को भरमाएं?

सौंदर्य-पान एक बहुत गहन भाव-भंगिमा है। हृदय के सौन्दर्य में वृद्धि के अनुरूप ही जगत सुन्दर होता चला जाता है। यहां तक कि- एक पूर्णतया विशुद्ध हृदय के लिए तमाम सृष्टि सौंदर्य की अभिव्यक्ति हो जाती है। कुछ भी कुरूप नहीं बचता।

मन की आंखों से देखा गया सौंदर्य, कोई महत्व नहीं रखता है, क्योंकि- मन वासना का चश्मा लगाकर देखता‌ है, जो चीज़ों को विरुपित कर देती है। वह सुन्दरता और कुरूपता को गड्ड-मड्ड कर देता है। आप मन के चक्कर में रहे, तो सौन्दर्य से कभी रूबरू नहीं हो पाएंगे।

इसलिए सौंदर्य को बाहर मत खोजिए, अन्यथा आप बहुरूपियों द्वारा ठग लिए जाएंगे।

अपने हृदय के सौन्दर्य पर ध्यान दीजिए। तब सौंदर्य खोजना नहीं पड़ेगा। वह आपके जीवन में प्रविष्ट हो जाएगा।