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चाचा की बाते चाय की तफरी पर

चाय की टपरी में आज काफी गहमा गहमी है। बनवारी लाल हाथ में अख़बार लिए पढ़ रहे और हर एक ख़बर पर चाय की चुस्कियों के साथ चर्चा हो रही। जैसे चुनाव के दल वैसे ही चाय की दुकान भी दो हिस्सों में विभाजित हो गई थी। मानो सारे देश की राजनीती दुकान पर ही आ गई हो। कुछ देर बाद दो अजनबी चाय की दुकान पर आते हैं। बनवारी लाल चाचा से रास्ते पूछते है। चाचा चाय की चुस्कियों डूबे हुए और खबरों की दुनियां में अपनी रोज की तरह आज भी मुस्कुराते हुए। बताते हैं। पता को बताते है। और वे दोनो धन्यवाद बोलते हुए आगे निकल जाते है।
बनवारी चाचा की सुबह की चाय नुक्कड़ की दुकान से शुरू होती है। और सारे दिन खबरों को हर चुस्कियों में बया करते है अपने जानने वालों के साथ। उनका सुबह जब तक वहां ना जाए तो मानो उनको पूरे दिन में कुछ कमी महसूस हो रहा हो। घर से ज्यादा वहां समय बिताते या तो अपने कार्यालय मे दोस्तो के साथ खाली समय के गप सडाका में बीतता था। आखिर समय बताता गया फ़िर एक वह दिन आया जिस दिन अपने कार्यालय का अंतिम दिन था मानो उनके शरीर से सारे बीते पलों की यादें आंखो के बंद करते ही नजर आता था आंखे खुलने के बाद कुछ नमी दिखाई पड़ती है। मन में विचार करते है कि अब तो अपने नुक्कड़ वाले रामू की चाय पर ही बीतेगा। लेकिन कुछ ही दिनों में वहां से भी थक जाऊंगा। आखिर क्या करूंगा चलो अब तो अपने पोते के खेल करेंगे और टी वी भी देख लिया करेंगे।
© genuinepankaj