...

16 views

Better than conservatism.
किसी लेखक या उसके कवि होने के साथ-साथ उस व्यक्ति का भी एक अपना महत्व है। उनकी अवस्था कैसे होती है?
आदरणीय।चलो चले हम एक प्रसंग की और, जहां हमें बहुत से अनरगर्ल टिप्पणी ओ को;विवेक से स्वयं हटते हुए देखेंगे।
प्राचीन गुरु परंपराओं का अपना एक महत्व रहा है;वह प्रकृति से परे जाने का ज्ञान तो देती है,परंतु विज्ञान का भी विरोध मिटाती है।
विद्या का प्रकाश केवल धर्म और शास्त्र के रूप में ही नहीं;बल्कि "साहित्य" के रूप में भी विकसित हुआं है।

एक दिन की बात है,मैं काशी में निवास कर रहा था।
वहां मैंने दो संतों की वार्ता सुनीं। स्वामी जी मधुशाला का एक पद गा़ रहे थे। वह कुछ ऐसा था।
मैं मधुशाला के अंदर या मेरे अंदर मधुशाला।
तभी; वहां पर एक सज्जन स्वभाव के साधु उपस्थित हुए, उन्होंने वह पद श्रवण करने के पश्चात प्रश्न पूछा, स्वामी जी एक साहित्यकार कैसा होता है,?क्या उनके भीतर भी; ईश्वर का कोई प्रकाश होता है?
ज्ञान भाव के उत्तम साधक;स्वामी जी मुस्कुराकर
उत्तर देने के लिए प्रेरित हुए। कुछ इस प्रकार कहने लगे;एक और, कोई प्रकृति को दुख: देने वाली मानता है; उसकी निंदा कर,त्यागी बनकर;विरोध की चादर ओढ़ कर रहता है।तथा दूसरी और कोई उसे आनंद देने वाली मानता है; उसकी स्तुति कर,कवि बनकर;प्रेम की चादर ओढ़ कर रहता है। आगे उन्होंने एक,उदाहरण भी प्रस्तुत किया। एक दिन की बात है,एक साहित्य भूषण;कवि हरिवंश राय बच्चन;आपकी धर्मपत्नी;उन्हें चाय देने के उद्देश्य से,उनके कमरे में जा पहुंची,तब बच्चन जी ने कुछ इस प्रकार प्रश्न पूछा;यह कौन सा श्रुतु चल रहा है! ?उनकी धर्मपत्नी ने आश्चर्य से उत्तर दे दिया। स्वामी जी मुस्कुराकर कहने लगे,जो व्यक्ति बाहर और भीतर कें विषयों से विमुख हो गया,ऐसें अलक्षित व्यक्ति के अंत:करण में,स्वत: सरस्वती का निवास होता है।
क्योंकि वह कुछ बनने या होने के दावे से मुक्त है। और इसी तरह के व्यक्ति में;ज्ञान का प्रकाश होता है। धर्म,शास्त्र,साहित्य,जो व्यक्ति मिट गया;उसी में से प्रकाशित होते हैं।

ज्ञान अलग-अलग अर्थों में,हमारे विचारों को ऊंचा बनाता है।
@kamal