...

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मित्रता
हां, आज राज बहुत उदास था।उसका स्नातकोत्तर का परीक्षाफल आज घोषित हो चुका था।
उसने आशा की थी कि वह अपने संकाय में कालेज में टाप करेगा। किंतु मात्र सात अंकों के अंतर में दो और लोगों के अंक आ जाने से उसे तृतीय स्थान हासिल हुआ था। उसके शिक्षकों ने उसकी शानदार सफलता के लिए बधाई दी किंतु उसे आज कुछ भी अच्छा नहीं लग रहा था।
कई बार ट्रिन ट्रिन ट्रिन......, मोबाइल की बैल बजी।
राज ने मोबाइल उठाया, सुुनीता का फोन था ।
सुनीता उसकी सहपाठी और मित्र थी। उसके पिताजी का तबादला कानपुर हो जाने के कारण वह दो वर्ष पूर्व वहां चली गई थी।
बधाई हो, उधर से सुनीता ने कहा।
अच्छा ,अब तुम भी मुझे ताने मार रही हो।राज ने कहा।
प्लीज़ राज ,ऐसे न कहो। मैं तुम्हें ताने क्यों और किसलिए दूंगी।
तुमने इतनी मेहनत कर 96.4प्रतिशत अंक पाये हैं।
क्या यह तुम्हारी सफलता का प्रतीक नहीं। मात्र सात अंकों का अंतर आपके सारे प्रयास और मेहनत को निष्फल नहीं कर सकता।
मुझे पुष्पा ने बताया था कि तुम किसी से बधाई नहीं ले रहे हो।मानवता के नाते मैंने आपको फोन किया था,और किसी कारण से नहीं।
नहीं हूं मैं किसी की मानवता का मोहताज।
प्लीज़,... मुझे अकेले रहने दो।
यह कहकर राज ने फ़ोन काट दिया था। राज बार बार यह सोच रहा था कि अब छुट्टियों में घर जाकर कैसे मुंह दिखाऊंगा। बहन‌ विनी को और पापा को वह कहकर आया था कि मैं ही टौप करूंगा।यह सोचकर वह ग्लानि से भर गया।और फोन को औफ कर के रख दिया।
अगले दिन ......…
उसके पिता और बहन विनी राज को फोन करते रहे पर फ़ोन औफ होने से कोई उनको उत्तर न मिला।
किसी अनहोनी की आंशका से वे घबरा गये।
उसकी डायरी से राज के मित्रों के फोन नंबर ढूंढे। अनायास ही विनी की नजर सुनीता के फ़ोन पर पड़ गई।
राज कभी कभी उसका जिक्र किया करता था।
उसने सुनीता को फोन मिलाया और राज के बारे में पूछा। सुनीता ने अपने साथ हुई बातचीत को बता दिया।
सुनकर वे दंग रह गए।
फोन भी नहीं मिल रहा था इसलिए वे और घबरा गए।शीघ्र दिल्ली की ओर रवाना हुए।
शाम को होस्टल जा कर राज के बारे में पूछा।
वह तो शाम से ही यहां से जा चुका है।हौस्टल प्रभारी ने कहा।
अब उनकी चिंता और बढ़ गई थी।
पापा, अब क्या करें,
विनी ने कहा।
बेटा, इनके अन्य मित्रों को फोन मिलाओ, पापा ने कहा।
शेखर, दीपक और संजय को फोन मिलाया गया।शेखर और दीपक ने कोई जानकारी नही
होने की बात कही लेकिन संजय ने बताया कि रात को राज की हालत बिगड़ गई थी। वह राज को कपूर हौस्पिटल में चिकित्सक के पास लेकर आया है। आप घबरा न जायें, इसलिए नहीं बताया था।
अब स्थिति नियंत्रण में है।
आप आकर राज से मिल सकते है।वे हड़बड़ा कर जल्दी जल्दी हौस्पिटल पर पहुंचे। पुत्र को सही सलामत देखकर उनके आंखों में ख़ुशी के आंसू आ गए। उसके मित्र संजय का उन्होंने बहुत बहुत आभार व्यक्त किया और कहा, आपके सही समय पर न पहुंचने से हम आज अपने पुत्र से वंचित रह जाते। धन्यवाद के पात्र है वो मित्र, जिन्हें ऐसे दोस्त मिलते हैं।


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