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मैं या तुम या हम....

"मैं" अगर खुद को "मैं_मैं" करती रहूंगी तो मेरे जीवन में जो भी होगा अच्छा बुरा, सही गलत , दुःख सुख और जो भी उतार चढ़ाव होंगे उन सब की जिम्मेदार "मैं" खुद ही होऊंगी या "मैं" ही होनी चाहिए। लेकिन "मैं" ऐसा नहीं करती, "मैं" अपने जीवन की सारी समस्याओं और मुश्किलों का जिम्मेदार "तुम" को ठहराती हूं और सभी सरलताओं और सहूलियतों का जिम्मेदार "मैं" ख़ुद को। क्या ऐसा हो सकता है की तुम्हारे संपर्क में आए बैगर "मैं" खुश तो हो सकती हूं लेकिन दुखी नही। यदि ऐसा है तो अकेलापन क्या है ? खुशी या दुख? जाहिर है अकेलेपन को सब दुख ही मानते है। तो "मैं" "तुम" से संपर्क तोड़कर खुश कैसे हो सकती हूं। खुश होने के लिए मुझे "मैं" और "तुम" मिलकर "हम" होना चाहिए। और यदि तुम्हारे संपर्क मे रहने से मुझे खुशी मिलती हैं और मेरा अकेलापन दूर होता है, तो मेरी सभी परेशानियों का ज़िम्मेदार "तुम" कैसे हो सकते हो। इसका मतलब "मैं" अपने दुख और परेशानियों का ज़िम्मेदार "मैं" खुद होनी चाहिए, लेकिन "मैं" खुद को खुद दुखी क्यूं करना चाहूंगी। और क्यूंकि तुम्हारे बैगर भी "मैं" अकेले खुश नही हो सकती तो "तुम" को भी ज़िम्मेदार नहीं ठहराना चाहिए, तो फ़िर इन सारे दुखों और खुशियों की सारी जिम्मेदारी फ़िर "हम" पर आती हैं। यानी कि "मैं" और "तुम" जब "हम" हो जाते हैं तब सब कुछ घटित हो सकता हैं। सुख भी दुख भी, सहजता भी कठिनाई भी, समाधान भी "हम" और समस्याएं भी "हम" से ही हैं।


© Sunita Saini (Rani)