...

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वो दिन
आज भी मैं उस दिन के बारे में सोचतीं हूँ
तो कांप उठते हैं रोएं मेरे
हां बिल्कुल उसी तरह जैसे एक शेर को देखकर
एक मेमना कांप उठता है
और ये सोचने को मजबूर हो जाता है
आखिर क्यूँ??
और उसके मन में ये ख्याल आए बिना रह नहीं पाता
कि क्यूंँ ये दिन आया ही..
बिल्कुल ऐसे ही भयावह दिन का दस्तक
हमारे सोने की धरती हमारे भारत भूमि पर भी एक आतंकित करने वाले रूप में हुआ
जिसने ना सिर्फ हमारा चैन सुकून बल्कि हमारे अन्न तक को हमसे छीन लिया और बिल्कुल एक गुलाम जैसे
हमें हमारे इस सोने की धरती पर
सोने के पिंजरे में कैद कर लिया।।
मंडराया एक डरावने आतंक का बादल
और जकड़ लिया गया हमें बेड़ियों में दास्ताँ के
जहाँ कभी सब कोई रहते थे
अब वहां कोई ही रह गए।।
और अब दशा ये थी कि...
अब भारत भी उन जगहों में शामिल हो गया
जहाँ सरकार थी और हर प्रथा सरकारी थी
अन्न जो कल तक पेट थी भरती
आज हो गई अत्याचारी थी
बेगारी थी, बेचारी भी थी
कर की थीं कतारें लगी
और ब्याज सहित लाचारी भी थी
हो गए थे बाकी सब उनके जाल में शामिल
और अबकि भारत की बारी थी
रो रही थी धरती भी देखकर खुद को
ओढ़े हुए जो दुपट्टे में खुद्दारी थी
यूं तो मां कभी झुकती नहीं
पर अपने थे न,, मोह में खुद के खून से हारी थी
पर थे वे क्रूरता की मिसाल लिए
राजनीति, कूटनीति उसमें भी ब्याज तौर पर ज़मींदारी थी
अपने भी अपनों को लूट रहे थे
सौ जाता तो एक_एक कैद से छूट रहे थे
भूल गए अब भाईचारा सब बस
खुद को समझ सशक्त रहे थे
एक ओर सब बेबस लाचार
दूसरे सूदखोरी में पी रक्त रहे थे
बनकर रह गए वो आज अपने ही खेतों में मजदूर मात्र
जो कभी अपने जमीन के मालिक सख्त रहे थे
तलवे चाटने लगे थे अमीर
जो कल तक आत्मसम्मान के भक्त रहे थे
आज वे कुछ ना कर सकते थे खुद के लिए
जो कभी युद्ध क्षेत्र में प्रशस्त रहे थे
न जाने क्या बीती होगी उनपे कैसे उन्होंने ये सब झेला होगा
मान लो वो विदेशी थे जल्लाद तो थे ही वे
पर अपनों ने उनके आड़ में ये दुश्मनी का खेल कैसे खेला होगा
क्यूँ नहीं चुभेगी वो करतूतें उनकी
क्यूँ इतिहास न याद दिलाएगा
जब भी पढ़ेंगे किताब उठाकर
हर बच्चे का खून खौल जाएगा
जिसके पूर्वजों की स्वतंत्रता लूट ली गई
उनके दामन में बैठकर
खुशी के झूले कैसे झूल सकता है!!
किस तरह क्षण छीन गई आज़ादी
वो दिन मुझे नहीं भूल सकता है!!



© Princess cutie